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________________ ४३४ * पार्श्वनाथ-चरित्र शुकने कहा, "हे पुण्यशाली! तुम मेरे पूर्व जन्मके मित्र हो, इसलिये मैं तुम्हें यह सब बातें बतलाता हूँ। कल सुबह पहले तुम उस पाषाणको लेकर अपने समस्त मनुष्योंके साथ यहांसे प्रस्थान करो। सात दिनोंमें तुम इस जंगलके उस पार पहुंच जाओगे। वहां पहुँच कर तुम ठहर जाना। वहीं मैं भी अपनी प्रियाके साथ तुम्हें आ मिलूंगा और इस सम्बन्धकी विशेष बातें वहीं बतलाऊंगा। ____ कनकने शुककी यह सलाह मान ली और दूसरे ही दिन वहांसे प्रस्थान किया। शुक भी उसके साथ ही चला। सात दिनमें जंगलके उसपार पहुंचने पर वहीं डेरा डाल कर सब लोग विश्राम करने लगे। दूसरे दिन कनकने शुकसे एकान्तमें पूछा,"हे शुकराज ! हे प्राणवल्लभ ! मैं तुम्हारे कथनानुसार यहां आ अहुँचा। अब बतलाओ, कि मुझे क्या करना चाहिये। यह सुन शुकने कनकको एक लता दिखलाते हुए कहा,-"इस लताके प्रभावसे तुम्हारा सब काम सिद्ध होगा। इसके समस्त पत्र इकट्ठा कर आंखमें पट्टी बांध लो। इसके प्रभावसे मनुष्य गरुड़ पक्षी बन जाता है। जब तुम गरुड़ हो जाओ, तब उड़कर चटक पर्वतपर जाना। वहां शाल्मलि नामक एक बड़ासा वृक्ष है, उसके फलमें छः प्रकारका स्वाद है। उसके पुष्पमें भी छः रंग होते हैं। उसका एक भाग सफेद, एक भाग लाल, एक भाग पीला, एक भाग नीला, एक भाग काला, एक भाग आसमानी और मध्यभाग पचरंगी होता है। इस वृक्षके पुष्प,
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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