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________________ * सप्तम सर्ग* ४२३ दूसरे अणुव्रतके भी पांच अतिचार यह है :-- (१) किसीको झूठा कलंक लगाना । (२) एकान्तमें किसीके साथ किया हुआ कोई गुप्त कार्य या रहस्य प्रकट करना। (३) झूठा उपदेश देना। (४) अपनी स्त्रीको गुप्त-बात प्रकाशित करना। (५) झूठा तौल-नाप करना या असत्य बातें लिखना । इनके अतिरिक्त सुज्ञ पुरुषको इन प्रधान पंचकूट ( असत्य) का भी त्याग करना चाहिये। कन्या विषयक कूट, चतुष्पद विषयक कूट, भूमिविषयक कूट; किसीकी रकमको हड़प जाना और झूठी गवाही देना। ___ तीसरे अणुव्रतके भा पांच अतिचार त्याज्य हैं यथा-(१) चोरीकी चीज लेना (२) चोरको सहायता करना , ३) चुंगी न देना (४) झूठे बटखरे और माप रखना (५) अच्छी और बुरी चीजोंको मिलावट करना। ___ चौथे अणुव्रतके भी पांच अतिचार त्याज्य माने गये हैं। यथा-(१) तनख्वाह देकर दासियोंसे दुराचार करना (२) वेश्या गमन करना (३) अत्यासक हो कामकोड़ा करना (४) लोगोंके विवाह कराते फिरना (५) काम भोगको तीव्र अभिलाषा रखना। पांचवें परिग्रह परिमाण-अणुवतके भी पांच अतिवार त्याज्य हैं, यथा-(१) धन धान्यके परिमाणका अतिक्रम (२)
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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