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________________ - षष्ठ सर्ग wwwnamam अतिथि मानते हैं। इसलिये मरना इस तरह चाहिये, कि जिससे फिर मरना न पड़े। इसके लिये मनमें सोचना चाहिये कि मुझे जिनेश्वरकी शरण प्राप्त हो, सिद्धको शरण प्राप्त हो, साधुकी शरण प्राप्त हो और केवलो भाषित धर्मकी शरण प्राप्त हो । अठारह पापसानोंका प्रतिक्रमण कीजिये । पञ्चपरमेष्ठी मन्त्रका स्मरण कीजिये। ऋषभादि जिनेश्वरोंको तथा भरत, ऐरवत, और महाविदेहके समस्त जिनेश्वरोंको नमस्कार कीजिये ; क्योंकि तीर्थंकरोंको नमः स्कार करनेसे ही संसारके बन्धनसे छुटकारा होता है और भव्य जीवोंको उच्च प्रकारके सम्यक्त्वका लाभ होता है। साथ ही सिद्ध भगवानको नमस्कार कीजिये, जिससे कर्मका क्षय हो। सनमें कहिये कि ध्यान रूपी अग्निसे सहस्र जन्मके कर्मरूपो इन्धनको जला देनेवाले सिद्ध भगवानोंको नमस्कार है। इसी तरह धर्माचार्योंको भी नमस्कार कीजिये । उपाध्यायको नमस्कार कोजिये। जिनकल्यो, स्थविरकल्पी, जंघाचारण, विद्याचारण इत्यादि सब प्रकारके साधुओंको भी नमस्कार कोजिये । इन पांच नमस्कारोंसे जीवको यदि मोक्षकी प्राप्ति न हुई तो वह वैमानिक देव तो अवश्य ही होता है। साथ ही चतुर्विध आहारका त्याग कर अनशन ग्रहण कीजिये। इससे अवश्य आपका कल्याण होगा और आपके इहलोक तथा परलोक बनेंगे। __मदनरेखाके इन अमृतके समान वचनोंको श्रवणकर युगबाहुका क्रोध शान्त हो गया। उसी समय उसने मस्तकपर अंजलि जोड़कर यह सब स्वीकार किया। इसके बाद शुभ ध्यानपूर्वक २५
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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