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________________ २० * पार्श्वनाथ चरित्र - तुम्हारी जाति और कुलका परिचय क्या है ? तुम्हारा नाम क्या है ? यह सुन कुमारने कहा,-"स्वामी ! विशेष पूछ-ताछ करनेसे क्या लाभ है ? आपको जो काम लेना है, वह बतलाइये । उसीसे आपको सब प्रश्नोंके उत्तर मिल जायेंगे।" राजाने सोचा,-"यह कोई सात्विक और परमार्थी जीव मालूम पड़ता है। अनुमानसे इसके कुल शील आदि भी उत्तम ही मालूम होते हैं।” यही सोच राजा कुमारको साथ लिये हुए अपनी कन्याके पास आये। वहाँ आकर राजाने कहा,—“हे नरोत्तम ! आप मेरी इस कन्याको दिव्यनेत्र प्रदान कर मेरा दुःख निवारण करें।" ____ कुमारने सुगन्धित-द्रव्य मंगाकर विधि-पूर्वक वहाँ मण्डल बाँधा और होम-जाप करने लगे। कहते हैं कि-शत्रु ओंमें, सभामें व्यवहारमें, स्त्रियोंमें और राज-दरबारमें आडम्बरहीकी पूजा होती है। इसी नीतिको स्मरण कर यह सब आडम्बर करनेके बाद कुमारने कमरमें बंधी हुई लता और भारण्डकी बीट निकालकर उन्हींके प्रयोगसे राजकुमारीकी आँखें दुरुस्त कर दी । राजकुमारी दिव्य नेत्रोंवाली हो गयी । भाग्य-सौभाग्यके निधानके समान और रूपमें कामदेवको जीतनेवाले लावण्य, औदार्य, गाम्भीर्य और सुन्दर चातुर्य आदि गुणोंके आधार-स्वरूप कुमारको देखकर राजकुमारी राजकुमारके प्रेममें बँध गयी। उसे इस तरह प्रेममें फँसी देख राजाने कहा,-"प्यारी पुत्री! ये बड़े परोपकारी पुरुष हैं। कहा है कि, सत्पुरुष अपने स्वार्थका विसर्जन करके भो दूसरोंके स्वार्थका साधन करते हैं, सामान्य जन अपने स्वार्थोकी
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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