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________________ ३४६ * पार्श्वनाथ चरित्र # कुमार यह काम कर सकते हैं, तब आपको कष्ट क्यों उठाना चाहिये ?” मन्त्रीकी यह सलाह सुनकर राजाने ज्येष्ठ पुत्र विजयकुमारको प्रस्थान करनेकी आज्ञा दी। इससे छोटे राजकुमार चन्द्रको कुछ असन्तोष हुआ और वह राजसभा छोड़ जानेको तैयार हुआ । उसे इस तरह क्रोधित होते देख राजाने उसे समझाते हुए कहा - " चन्द्रसेन ! तुझे व्यर्थ ही क्रोध न करना चाहिये । उत्तम प्रकृतिके पुरुष सम्मानको इच्छा नहीं रखते । विजयकुमार तुम्हारा ज्येष्ठ बन्धु है, इसलिये पहले उसीको काम सपना मेरा कर्तव्य है । छोठे भाईके लिये तो बड़ा भाई पिताके समान होता है। बड़ा भाई जीवित रहनेपर छोटे भाईको राजसिंहासन दिया जाय, तो वह उसे भी स्वीकार नहीं करता ।” इसी प्रकार मन्त्रियोंने भी चन्द्रसेनको बहुत कुछ समझाया बुझाया। किसी तरह समझाने बुझानेपर चन्द्रसेनको अपने कर्तव्यका ज्ञान हुआ 'और वह अपनी भूल समझकर पुनः अपने आसनपर आ बैठा । इधर विजयकुमार ने अपनी समुद्रके समान सेनाको तैयारकर यथा समय रणयात्राके लिये प्रस्थान किया । स्वदेशकी सीमापर पहुँचने पर विजयकुमारने सेवा लको सन्देश भेजा, कि तू उपद्रव छोड़कर अपने स्थानको चला जा । अन्यथा युद्ध करनेके लिये तैयार हो । विजयकुमारका यह सन्देश सुनकर सेवाल क्रोधसे कांप उठा । उसने कहा - " वीर पुरुष वाग्युद्ध नहीं करते । यदि युद्ध करनेकी सामर्थ्य हो, तो सन्मुख आकर युद्ध करो, वर्ना
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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