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________________ * पार्श्वनाथ-चरित्र कर्मकी गतिका उल्लंघन नहीं हो सकता । तथापि तेरे हितके लिये मैं तुझे बतला देना चाहता हूँ कि राजपुरमें जब तु मुर्गा होगा तब मुनिको देखकर तुझे जातिस्मरणशान होगा और तू अनशन पूर्वक प्राण त्याग कर उसी राजपुरका राजा होगा। उस समय उपवन जाते समय पार्श्वप्रभु को देखकर तुझे ज्ञान उत्पन्न होगा।" मुनिके इन वचनोंको श्रवण कर दत्तको बड़ा हो आनन्द हुआ! मुनिके कथनानुसार मरनेके बाद दत्त पहले मुर्गा और फिर राजा हुआ। वही मैं स्वयं हूं और प्रभुको देखकर मुझे जातिस्मरणज्ञान हुआ है।” इस प्रकार मन्त्रीको अपना यह वृत्तान्त सुनानेके बाद राजाने प्रभुको नमस्कार कर, उनके कायोत्सर्ग करनेकी जगह एक चैत्य बनवाया और उसमें बड़े समारोहके साथ प्रभु-प्रतिमा स्थापन की। इसके बाद यह चैत्य कुर्कटेश्वरके नामसे प्रसिद्ध हुआ और इसी जगह राजाने कुर्कटेश्वर नामक एक नगर भी बसाया।" एक बार विहार करते हुए भगवान किसी नगरके समीप एक तापसके आश्रममें जा पहुंचे। उस समय सूर्य अस्त हो गये इसलिये पार्श्वप्रभु एक कूएके पास वृटवृक्षके नीचे रात्रिके समय कायोत्सर्ग करने लगे। इसी समय वह अधमदेव मेघमाली अपने अवधिज्ञानसे पूर्व जन्मके वैरका वृत्तान्त जान कर क्रोधसे जलता हुआ भगवानको कष्ट देनेके लिये आ उपस्थित हुआ। वह पापात्मा बड़ाही दुष्ट, और नीच था। उसने सर्व प्रथम पर्वत जेसे विशालकाय हाथियोंका रूप धारण किया। वे चिग्घाड़ते हुए
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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