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________________ * पञ्चम सगं * रहा है। क्या तू पाश्चकुमारके बल-विक्रमसे परिचित नहीं है ! निःसन्देह वे तुझे रणभूमिमें ऐसी शिक्षा देंगे, कि तेरा यह सब अभिमान मिट्टोमें मिल जायगा।" दूतके यह कटुवचन सुनकर कलिंगराजके सुभट लोग उसे मारने दौड़े; किन्तु वृद्ध मन्त्रीने उन्हें रोककर कहा-"यह क्या करने जा रहे हो ? जिन पार्श्वकुमारकी देव सहित इन्द्र भो सेवा करते हैं, उनके दूतको मारनेसे तुम्हारो क्या गति होगी?" यह सुनकर सुभट लोग भयभीत होकर चुप हो गये। इसके बाद मंत्राने दृतको समझा कर कहा कि-"हमलोग तो पार्श्वकुमारके सेवक हैं। उनसे जाकर कह दो कि हमलोग शोघ्र ही आपको वन्दन करनेके लिये आनेवाले हैं। यह कहकर मन्त्रोने दूतको विदा किया। इसके बाद उसने राजाको समझाते हुए कहा-“हे राजन् ! पार्श्वकुमार तोनों लोकके नाथ हैं। समस्त नुरासुर, नागेन्द्र और इन्द्र भी सेवककी भांति उनकी सेवा करते हैं। वे चक्रवर्ती किंवा जिनेश्वर होनेवाले हैं। उनसे विरोध करना ठोक नहीं। कहां सूर्य और कहां खद्योत ? कहां सिंह और कहां मृग! कहां पार्श्वकुमार और कहां आप? क्या आपने यह नहीं सुना कि स्वयं इन्द्रो अपने मातलि नामक सारथिको रथ देकर पार्श्वनाथके पास भेजा है ? यदि आप अपना कल्याण चाहते हैं तो आपको कंठपर कुठार रख, पार्श्वकुमारके पास इसी समय चलना चाहिये और उनसे क्षमा प्रार्थना कर अपने अपराधको क्षमा कराना चाहिये । इसीमें आपका श्रेय है।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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