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________________ • प्रथम सर्ग ही देशमें चला जाना चहिये । कहा भी है कि देशाटन, पण्डितोंकी मित्रता, वेश्याका संसर्ग, राज सभामें प्रवेश, और अनेक शास्त्रों का अवलोकन ये पांचों बातें चतुराई पैदा करती हैं, क्योंकि इन बातोंसे तरह तरहके चरित्रोंका परिचय प्राप्त होता है, सज्जनों और दुर्जनोंकी विशेषता मालूम होती है और अपनो ख्याति होती है । इसलिये दुनिया भरमें घूमना फिरनाही उचित है।" __ऐसाही निश्चय कर कुमार एक दिन रातको चुपचाप घरसे बाहर निकल पड़े और एक अच्छे घोड़ेपर सवार हो एक ओर चल दिये, उस समय वही धूर्त, अधम सेवक, जिसका नाम सज्जन था, अपनी दुष्ट प्रकृतिके कारण कुमारके पोछे-पीछे चला। दोनोंही साथ-साथ परदेश जाने लगे। ___एक दिन कुमारने रास्ते में उससे कहा “सज्जन! जिसमें जी लगे, ऐसी कुछ मनोहर बातें कहता चला,” यह सुन उसने कहा,-“हे देव ! यह तो कहिये, पुण्य और पाप इन दोनोंमें कौन श्रेष्ठ हैं ? यह सवाल सुन कुमारने कहा,-"अरे मूर्ख! तू ऐसा सवाल क्यों करता है ? तेरा नाम सज्जन है, पर तू भीतरका दुर्जनही मालूम पड़ता है। क्योंकि भोमका नाम मङ्गल, कुयोगका माम भद्रा, फसलको नाश करनेवाली वर्षाका नाम अति वृष्टि, तीव्र ज्वालामय स्फोटकका नाम शीतला, आदि केवल नाम मात्रको ही हैं, उनका कोई अर्थ नहीं है। अरे मूढ़ ! धर्मको सदा जय होती है और अधर्मकी पराजय-यह बात औरतें बच्चे, खेतिहर और हलवाहतक जानते हैं।"
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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