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________________ * पार्श्वनाथ-चरित्र * उसने विचार किया कि यह कोई जरूरी बात नहीं है, कि पिताजीने जैसा कहा है, वैसा ही मुझे करना चाहिये। पहले यह भी देखना चाहिये कि उन्होंने जो कहा है, उससे उलटा करनेपर क्या फल होता है ? यह सोचकर वह घरसे निकल पड़ा और विदेशके लिये प्रस्थान किया। चलते-चलते रास्तेमें एक गांव मिला। उस गांवमें सिंह नामक एक राजा राज्य करता था। उसके सम्बन्धमें प्रभाकरने सुना कि वह बड़ा ही कृतघ्नी, अभिमानी और नीच है। यह सुनकर उसने सोचा, कि बस, इसीके यहां रहकर पिताके वचनको परीक्षा करनी चाहिये। अतः वह तुरत ही सिंहके पास गया और उसके यहां नौकरी कर लो। इस राजाके यहां सेवा धर्महीन, नीच, मूर्ख और रूखे स्वभावकी एक दासी थी । उसे प्रभाकरने अपनी स्त्री बना कर अपने घरमें रख लिया। अब कमी रह गयो केवल एक लोभी मित्रकी । इसके लिये उसने लोभचन्दी नामक एक निर्धन वणिकको खोज निकाला। इस प्रकार पिताके बतलाये हुए तीनों उपकरणसे विपरीत उपकरण एकत्र कर वह समय बिताने लगा। अपने बुद्धिबल और पराक्रम द्वारा उसने कुछ ही दिनोंमें राजाका खजाना बढ़ा दिया। दासोको अनेक वस्त्राभूषण बनवा दिये और लोभचन्दीको खूब धनवान बना दिया। अपने इन कार्योंके कारण वह तीनोंका प्रियपात्र बन गया और वे उसे प्राणसे भी अधिक चाहने लगे। इसी तरह बहुत दिन व्यतीत हो गये। सिंह राजाके यहां एक बहुत बढ़िया मयूर था। उसे सिंहने स्वयं
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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