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________________ २३० * पाश्वनाथ-चरित्र मांस, मधु और मक्खनमें सूक्ष्म जन्तु उत्पन्न होते और लीन होते हैं। सात ग्रामोंको अग्निसे जलादेनेपर जितना पाप लगता है, उतना ही पाप मधुका एक विन्दु भक्षण करनेसे लगता है। मद्यको दो जातियां हैं--काष्टमद्य, और पिष्टमद्य । मांस तीन प्रकार का है---जल चर, स्थलचर और खेचर । मधु भी तीन प्रकार होता है---माक्षिक, कौत्रिक ( ? ) और भ्रामर । मक्खन भी गाय, भैंस, बकरी और भेंड़-चार प्रकारका होता है । यह सभी अभक्ष्य माने गये हैं। हिम किंवा बरफ भी अगणित अपकायका पिण्डरूप होता है। यहां कोई यह शंका कर सकता है कि जलमें भो तो असंख्य जीव होते हैं, इसलिये वह भी अभक्ष्य है। यह कथन सत्य होने पर भी जल अभक्ष्य इसलिये नहीं माना गया, कि उसके बिना निर्वाह नहीं हो सकता, किन्तु बरफके बिना निर्वाह हो सकता है, इसलिये उसे अभक्ष्य माना है। जलका निषेध न होनेपर भो श्रावकको जहांतक हो सके प्रासुक जल ही पीना चाहिये । खड़िया प्रभृति अनेक प्रकारको मिट्टी भी त्याज्य है। इसका भक्षण न करना चाहिये। जिन स्त्रियोंको मिट्ठो खानेका व्यसन लग जाता है, उन्हें पाण्डुरोग, देह दौर्बल्य, अजीर्ण, श्वास और क्षय प्रभृति रोग हो जाते हैं। इन रोगोंसे न केवल कष्टही होता है बल्कि प्राणान्त तक हो जाता है। मिट्टोमें अनेक जीवजन्तु होते हैं, इसलिये सचित्त मिट्टीका भक्षण करनेसे उनकी विराधना लगती है। लोग कह सकते हैं, कि ऐसी अवस्थामें
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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