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________________ * पार्श्वनाथ-चरित्र तेरो स्त्रो और तेरे पुत्र हो मिलेंगे, बल्कि शीघ्रही तुझे अपने राज्य की भी प्राप्ति होगी। मैं तुझे एक चिन्तामणि रत्न देता हूँ। इस रत्नको सदैव अपने पास रखना। इससे शोघ्रही तेरा अभीष्ट सिद्ध होगा।" यह कह उस देवने चिन्तामणि रत्न राजाके हाथमें रखा और उसे उसी क्षण आदिनाथके उस चैत्यमें पहुँचा दिया, जहांसे उसे यक्षिणी उठाकर कुए में डाल गयी थी। इस घटना और रत्न प्राप्तिसे सुन्दर राजको बड़ा ही आनन्द हुआ । वह आनन्द पूर्वक इधर उधर भ्रमण करता हुआ श्रीपुर नगरके समीप पहुंचा और वहांके उपवनमें एक आम्र वृक्षके नीचे बैठकर विश्राम करने लगा। कुछ थकावट दूर होनेपर उसने उसी आम्र के फल खाकर अपनी क्षुधा शान्त को। इसके बाद कुछ समयके लिये उसे निद्रा आ गयी और वह अपने समस्त दुःखोंको भूलकर वहीं सो रहा। ____ इसी समय उस नगरके राजाकी मृत्यु हो गयी। उसके पुत्र नहीं था इसलिये मन्त्री प्रभृतिने प्रथानुसार उसके उत्तराधिकारीको खोज निकालनेका आयोजन किया। इसके लिये हाथी, घोड़ा, छत्र, चामर और कुंभ इन पांच दिव्योंकी पञ्च शब्दके निनाद सहित सवारी निकाली गयी, न तो इन्हें किसी ओर चलमे की प्रेरणा को जाती थी, न कोई इनकी गतिमें बाधा देता था। जहां इनकी इच्छा होती थी, वहीं इन्हें जाने दिया जाता था। यत्रतत्र भ्रमण करते हुए यह सब उस स्थानमें आ पहुँचे, जहां आम्र बृक्षके नीचे सुन्दर राजा श्रमित होकर सो रहा था। यहां
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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