SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * द्वितीय सर्ग * ११७ ओर रूप गुणमें अद्वितीय है। यदि आप उसका पाणिग्रहण करेंगे, तो मुझपर बड़ी कृपा होगी । कुमारने हेमरथको यह प्रार्थना सहर्ष स्वीकार कर ली । अतः मदालसा और भीमकुमारका परिणय बड़े समारोहके साथ सम्पन्न किया गया । इसी समय कापालिकके साथ बीस भुजावाली कालिका विमानमें बैठकर वहाँ आ पहुँची । उन्होंने कुमारको एक हार देते हुए कहा - " हे कुमार ! यह अपना एक हार मैं तुझे देती हूँ | इस हारमें नवरत्न हैं। उनके प्रभावसे तुझे तीन खंडका राज्य और आकाश गमनकी शक्ति प्राप्ति होगी । साथ ही सब राजा तेरी अधीनता स्वीकार करेंगे। मुझे एक बात और भी कहनी है - तेरे माता पिता और पुरजन परिजन तेरे विरहसे बड़ेही दुःखित हो रहे हैं। वे तेरा दर्शन करना चाहते हैं । मैं जिस समय विमान में बैठकर तेरे नगरके ऊपरसे निकली, जस समय मैंने देखा कि तेरे माता पिता और नगरनिवासी तेरा नाम ले ले कर विलख रहे हैं । मैंने यह देखकर उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि, " तुम लोग चिन्ता न करो, मैं दो रोज़में भीमको यहाँ लाकर तुमसे मिला दूंगी।" इसलिये अब तुम्हें शीघ्र ही अपने नगरकी ओर प्रस्थान करना चाहिये । कालिकाकी यह बात सुन भीमकुमार वहाँ से चलनेके लिये उत्कंठित हो उठा । यह जानकर उस यक्षने विमानका रूप धारण कर कहा, – “हे कुमार ! आओ, विमानमें बैठ जाओ, मैं तुम्हें क्षणभरमें तुम्हारे पिताके पास पहुँचा दूँगा ।” कुमारको जानेकी तैयारी करते देख हेमरथने अनेक हाथी, वस्त्राभूषण और रत्नादि
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy