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________________ द्वीतीय सर्ग। पूर्व महाविदेहमें सुकच्छ नामक विजयमें, वैताढ्य पर्वतपर एक बहुत ही सुन्दर नगरी थी। उसका नाम तिलकपुरी था। वह ऊंचे और मनोहर प्रसादोंसे सुशोभित हो रही थी। उसके हाट, बाज़ार, गली और कूचे-सभी अनन्त शोभाके भण्डार थे, यही कारण था कि वहाँ विद्याधरोंकी टोलियाँ सदा-सर्वदा विचरण किया करती थीं। नगरी क्या थी, सुख और शान्तिको आगार थी। जो उसकी गोदमें जा पहुँचता, वही अपने दुःखोंको भूलकर आनन्द-सागरमें हिलोरें लेने लगता। ___इस नगरीमें विद्युद्गति नामक एक परम प्रतापी राजा राज्य करता था। वह समस्त विद्याधरोंका स्वामी था। उसकी उज्ज्वल कीर्ति-पताका दिग्दिगन्तमें फहरा रही थी। वह जैसा आचार शील था, वैसा ही कर्तव्य निष्ट था। वह प्रजा-पालनमें कभी किसी प्रकारकी त्रुटि न होने देता था। इसीलिये वह शिष्ट, प्रशिष्ट, हृष्ट और न्याय-निष्ठ कहलाता था। उसके तिलकावती नामक एक रानी थी। वह रूप और लावण्यमें अद्वितीय थी।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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