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________________ ७२ * पार्श्वनाथ चरित्र * न कर सके। देवताओंको केश, अस्थि, मांस, नख, रोम, रुधिर, वसा, (चर्बी,) चर्म, मूत्र और मल आदि अशुचियें नहीं होती । उनका श्वासोच्छवास सुगन्धित होता है, उनके पसीना नहीं आता, वे निर्मल देहवाले होते हैं, उनकी आंखोंकी पलक नहीं गिरती, मनमें जिस बातका सङ्करूप होता है उसे वे झट पूरा कर लेते हैं। उनकी फूलमाला कभी मलीन नहीं होती और वे सदा भूमिसे चार अङ्गुल ऊपर उठे रहते हैं । यह जिनेश्वरोंकी कही हुई बात है । इधर वरुणा हस्तिनी कठिन तपकर अन्तमें अनशन द्वारा मरणको प्राप्त हो, दूसरे देवलोकमें चली गयी। उस परम रूपलावण्यमयी देवीका मन किसी देव पर आता ही नहीं था । वह सदा उसी गजेन्द्र के जीवको, जो देव हुआ था, याद करती रहती थी । जब गजेन्द्रके जीवको भी उस पर अनुराग हो आया तो उसने अपने अवधिज्ञानके द्वारा यह मालूम कर लिया कि वह मुझपर अत्यन्त आसक्त है, तब वह उसके पास जाकर सहस्रार देवलोक में उसे लिवा लाया । पूर्वजन्म के सम्बन्धके कारण दोनों का एक दूसरे पर खूब गाढ़ा प्रेम हो गया । कहते हैं। कि प्रथम दोनों देवलोकोंके देवता ( मनुष्यकी तरह) शरीरसे विषयका सेवन करते हैं, तीसरे और चौथे देवलोकोंके देवता स्पर्श मात्र से पांचवें और छठे देवलोकोंके देवता केवल रूप-दर्शनसे; सातवें और आठवें देवलोकोंके देवता केवल शब्द श्रवण कर और शेष चार देवलोकोंके देवता केवल मनसे ही विषयका ;
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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