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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ चरित्र J इस प्रकार ध्यानमग्न बाहुबलीने आहार बिना विहार करते हुए ऋषभस्वामीकी तरह साल भर बिता दिया। साल पूरा होने पर विश्ववत्सल ऋषभस्वामीने ब्रह्मा और सुन्दरीको बुलाकर कहा, - “इस समय बाहुबली अपने प्रचुर कर्मोंका क्षय कर, शुक्लपक्षको चतुर्दशीकी भाँति तम. रहित हो गया है 1 परन्तु जैसे परदेमें छिपा हुआ पदार्थ देखों में नहीं आता, वैसेही मोहनीय कर्मों के अंश रूप मानके कारण उसे केवलज्ञान नहीं प्राप्त होता अब तुमलोग वहाँ जाओ, तो तुम्हारे उपदेशसे वह मानको त्याग देगा । यही उपदेशका ठीक समय है ।" प्रभुकी यह आज्ञा सुन, उसे सिर आँखों पर ले, उनके चरणों में प्रणाम कर, ब्राह्मी और सुन्दरी बाहुबली के पास चलीं । महाप्रभु ऋषभदेवजी पहलेसे ही बाहुबलीके मनकी बात जानते थे, तो भी उन्होंने सालभर तक उनकी अपेक्षा की क्योंकि तीर्थंकर अमूढ़ लक्ष्यवाले होते हैं, इसीसे अवसर पर ही उपदेश देते हैं। आर्या ब्राह्मी और सुन्दरी उस देशमें गयीं; पर राख लिपटे हुए रत्नकी तरह घनी लताओं से छिपे हुए वे महामुनि उनको दिखाई न दिये । बारम्बार खोजते ढूंढ़ते, वे दोनों आर्याएँ वृक्षकी तरह खड़े हुए उन महात्मा को किसी-किसी तरह पहचान सकीं। बड़ी चतुराई से उन्हें पहचान कर वे दोनों आर्याएँ महामुनि बाहुबलीको तीन वार प्रदक्षिणा कर, बन्दना करती हुई बोलीं, हे बड़े भाई ! भगवान् अर्थात् आपके पिताजीने हमारे द्वारा आपको यही सन्देसा भेजा है, कि हाथी पर चढ़े हुए पुरुषोंको केवल - ज्ञान नहीं प्राप्त होता F ४७६
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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