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________________ प्रथम पवं आदिनाथ-चरित्र के बीच में आये हुए सूर्यके समान बड़े उत्साह और पराक्रम वाले वे दोनों ऋषभकुमार अपनी-अपनो सेनाओंके बीच में आ विराजे। उस समय अपनी-अपनी सेनाओं के बीचमें टिके हुए भरत औरबाहुबली राजा जम्बूद्वीपमें रहने वाले मेरु पर्वतकी शोभा दिखला रहे थे। उन दोनों सैन्योंके बीचमें पड़ी हुई पृथ्वी, निषध और नील पर्वतोंके बीच में पड़ी हुई महा विदेहक्षेत्र भूमिकी तरह मालूम पड़ती थी। जैसे कल्पान्तके समय पूर्व और पश्चिम समुद्र आमने-सामने वृद्धि पाते हैं, वैसे ही दोनों आमने-सामने पंक्ति बाँधकर चलने लगे। बाँध जिस प्रकार जलके प्रवाहको रोकता है, उसी प्रकार पंक्तिसे अलग होकर चलनेवाले पैदल सिपाहियोंको राजाके द्वारपाल रोक देते थे। ताल सहित संगीत करनेवाले नाटकीय अभिनेताओंकी तरह वीरगण राजाकी आज्ञासे बराबर पाँव रखेहुए चलते थे। वे वीर अपने स्थानको उल्लंघन किये बिना चल रहे थे, इसी लिये दोनों ओरकी सेनाएं एक शरीर वालो मालूम पड़ती थीं। वीर योद्धागण पृथ्वीको रथोंके लोहेके मुखवालेचक्रोंसे विदीर्ण किये डालतेथे,लोहेकी कुदालीके समान घोड़ोंके तीखे खुगेसे खोद डालते थे। मानों लोहेका अद्धचन्द्र हो, ऐसे ऊँटोंके खुरोंसे पृथ्वी छिदी जाती थी। वज्रकीसी कठोर एड़ियों वाले पैदल सिपाही अपने पैरोंसे ही पृथ्वीको विदीर्ण किथे डालते थे। छुरेके समान तेज़ बाणकेसे महिषों ओर सांडोंके खुरोंसे भी पृथ्वी फटी जाती थी। मुद्गलकेसे हाथियोंके.पैर भी पृथ्वीको चूर्ण किये
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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