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________________ आदिनाथ-चरित्र ४०६ प्रथम पचं __ उस देशमें रास्तेके किनारे वाले वृक्षोंके नीचे अलङ्कार पहने हुई बटोहियोंको स्त्रियाँ निर्भय हो कर बैठी रहती थीं, जिससे वहाँ के सुराज्यका पता चलता था। प्रत्येक गोकुलमें वृक्षोंके नीचे बैठे हुए गोपालोंके पुत्र हर्षित-चित्तसे ऋषभदेवके चरित्र गाया करते थे। उस देशके सभी गाँव, ऐसे बहुतसे फलवाले और घने वृक्षोंसे अलंकृत थे, जो ठीक भद्रशाल-वनमें से लाकर लगाये हुएसे मालूम पड़ते थे। वहाँ गाँव-गाँव और घर-घरके गृहस्थ, जो दान देने में दीक्षित थे, याचकोंको खोजमें फिरते थे। कितने ही गाँवोंमें ऐले विशेष समृद्धिशाली यवन गण निवास करते थे, जो राजा भरतके भाससे उत्तर-भारतसे आये हुए मालूम पड़ते थे। भरतक्षेत्रके छः खण्डोंसे मानो यह एक निराला हो खण्ड था, इस तरह वहाँके लोग राजा भरतके हुक्म-हाकिम से अनजान थे। इस प्रकार उस बहेलो देशमें जाता हुआ सुवेग, वहाँके सुखो प्रजा-जनोंसे, जो बाहुबली राजाके सिवा और किसी को जानते हो नहीं थे, बारम्बार बाते किया करता था। उसने देखा, कि जंगलों तथा पर्वतोंमें घूमने-फिरनेवाले मदमत्त शिकारी भी बाहुबलीकी आज्ञासे मानो लँगड़े हो गये हैं। प्रजा-जनोंके अनुराग-पूर्ण वचनों और उनकी बढ़ो-चढ़ी हुई समृद्धि देखकर वह बाहुबलकी नीतिको अद्वैत मानने लगा। इस प्रकार राजा भरतके छोटे भाईका उत्कर्ष सुन-सुनकर विस्मित होता हुआ सुवेग अपने स्वामीके दिये हुए संदेसेको बार-बार याद करता हुआ तक्षशिला नगरीके पास आ पहुँचा। नगरीके बाहरी हिस्से
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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