SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 416
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व आदिनाथ चरित्र अपने रतिगृहमें ले गई। वहाँ महाराजने उनके साथ नाना प्रकारके भोग-विलास किये और एक हजार वर्ष एक दिनकी तरह बिता दिये। शेषमें महाराजने गङ्गादेवीको समझाबुझा कर उनसे विदा ली और रतिगृहसे बाहर आये। इसके बाद उन्होंने अपनी प्रबल सेनाके साथ खण्डप्रपाता गुफाकी ओर कूच किया। खंड प्रपाता खोलकर निकलना । जिस तरह केशरी सिंह एक वनसे दूसरे वनमें जाता है : इसी तरह अखण्ड पराक्रमशाली चक्रवर्ती महाराज उस स्थानसे खएडप्रपाताके नज़दीक पहुँचे। गुफोसे थोड़ी दूर पर इस बलिष्ट राजाने अपनी छावनी डाली। वहाँ उस गुफाके अधिछायक नाट्यमाल देवको मनमें याद कर उन्होंने अष्टम तप किया। इससे उस देवका आसन काँपने लगा। अवधिज्ञान से भरतचक्रवर्तीको आये हुए जान, जिस तरह कर्जदार साहू. कारके पास आता है, उसी तरह वह भेंट लेकर महाराजके सामने आया। महत् भक्तिवाले उस देवने छै खण्ड पृथ्वीके आभूषणरूप महाराजको अपण किये और उनकी सेवा बन्दगी स्वीकार की। नाटक कर चुके हुए नटकी तरह, नाट्यमाल देवको विचारशील चक्रवर्तीने प्रसन्न होकर बिदा किया। और फिर पारणा कर उस देवका अष्टाहिका उत्सव किया। इसके बाद चक्रवर्तीने सुषेण सेनापतिको खण्ड.
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy