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________________ प्रथम पर्व ३५७ आदिनाथ-चरित्र तरह वृक्ष नष्ट हो जाते हैं, उसी तरह सुषेण रूपी जलकी बाढ़से निर्बल हो, किरात कोसों दूर भाग गये। फिर कव्वों की तरह इकट्ठे हों, क्षणमात्र में विचार कर, घबराया हुआ बालक जिस तरह माँके पास आता है, उसी तरह महानदी के नजदीक आये और मृत्यु-स्नान करनेके लिये तैयार हो इस तरह उसके किनारों पर बिछौने बिछाकर बैठ गये। वहाँ उन्होंके नड़े और उतान हो मेघ मुख आदि नाग कुमार निकाय अपने कुल-देवताओं को याद कर अष्टम तप करने लगे। अष्टम तपके अन्तमें, मानों चक्रवर्ती के तेज से भीत हुए हों, इस तरह नाग कुमार' प्रभृति देवताओं के आसन काँपे। अवधिशानसे म्लेच्छों को इस तरह दुखी देखकर दुखित हुए पिताके समान उनके सामने आकर प्रकट हुए और आकाश में ठहर कर उन्होंने किरातों से कहा-“तुम्हारे मनमें किस बातकी चाहना है ? तुम क्या चाहते हो?" आकाश में रहने वाले मेघ मुख नागकुमार को देख, त्रसित हुए या डरे की तरह सिर पर हाथ रख कर उन्होंने कहा-"आज तक हमारे देश पर किसीने भी आक्रमण या हमला नहीं किया, लेकिन अभी कोई आया है, आप ऐसा उपाय कीजिये कि वह यहाँ से वापस चला जाय।” किरातों की प्रार्थना सुन कर देवताओंने कहा--"किरातो ! यह भरत नामका चक्रवर्ती राजा है, इन्द्र की तरह यह देव असुर और मनुष्यों से भी अजेय है : अर्थात् इसे सुर; असुर और नर कोई भी जीत नहीं सकते। टांकियों से जिस तरह पहाड़ के
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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