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________________ innan आदिनाथ-चरित्र ३२४ प्रथम पर्व है, उसी तरह या वैसी ही कान्तिके साथ महाराजा पौषधागार में से निकले। पीछे सर्व अर्थ को प्राप्त हुए राजाने स्नान करके बिलविधान किया ; क्योंकि यथार्थ विधि को जानने वाले पुरुष विधि को नहीं भूलते। मागध तीर्थ के अधिपति देवको साधन करने का यत्न । इसके बाद पवन के जैसे वेग बाले और सिंहके समान धैर्य धारी घोड़ोंके रथमें उत्तम रथी भरतराय सबार हुए। मानों च. लसा हुआ महल हो, इस तरह उस रथके उपर ऊँची पताका वाला ध्वजस्तम्भ था। शस्त्रागार की तरह अनेक श्रेणियों से वह विभूषित था और मानो चारों दिशाओं की विजय लक्ष्मी के बुलाने के लिये रखी हों, ऐसी टन टन करने वाली चार घन्टियाँ उस रथके साथ बँधी हुई थीं। शीघ्र ही इन्द्र के सारथी मातलि की तरह राजा के भावको समझने वाले सारथी ने रास हाथोंमें लेकर धोड़े हाँके। महा हस्ती रूपी गिरिवाला, बड़े बड़े शकट रूपी मकर समुह वाला, चपल अश्व रूपी कल्लोल :वाला, विचित्र शस्त्र रुपी भयङ्कर सो वाला, पृथ्वी की उछलती हुई रज रूपी बेला वाला और रथों के निर्घोष रूपी गरजना वाला-दूसरे समुद्र के जैजा वह राजा समुद्र के किनारे पर आया। (यहाँ रूपक बांधा है, महाराजा भरत की तुलना सुमुद्रसे की है, समुद्र में पर्वत होते हैं, महाराज के पास पर्वत समान हाथी थे, समुद्र में बड़े
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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