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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व कपूर मय उत्तम धूप जलाई। इसके बाद चक्रधारी महाराज भरतने चक्रको तीन प्रदक्षिणा की, और गुरु की तरह अवग्रह से सात आठ कदम पीछे हट गये। जिस तरह अपने तई कोई स्नेही-मुहब्बत से चाहने वाला नमस्कार करता है, उस तरह महाराज ने बायाँ घुटना नीचे दवाया, सुकेड़ कर और दाहने से पृथ्वी पर टिक कर चक्र को नमस्कार किया। शेषमें मूर्तिमान हर्ष ही हो, इसतरह पृथ्वीपतिने वहाँ ठहरकर चक्रका अष्टान्दिका उत्सव किया। उनके अलावः शहरके धनीमानी लोगोंने भी चक्र की पूजा का उत्सव किया ; क्योंकि पूजित या माननीय लोग जिसकी पूजा करते हैं, उसे दूसरा कौन नहीं पूजता ? भरतद्वारा कीगई चक्र की पूजा। इसके बाद, उस चक्रके दिगविजय रूप उपयोग को ग्रहण करने की इच्छा वाले भरत महाराज ने मंगल मानके लिए स्नानागार या स्नान-घरमें प्रवेश किया। गहने कपड़े उतार कर और स्नान के समय कपड़े पहन कर, महाराज पूरबकी ओर मुंह करके स्नान सिंहासन पर बैठे। ठीक इसी समय, मर्दन करने योग्य और न करने योग्य मालिश करने लायक और न करने लायक स्नानोंको जाननेवाले,मर्दनकला निपुण संवाहक पुरुषोंने, देववृक्ष के पुष्प-मकरन्द के जैसी सुगन्धी वाला सहस्रपाक प्रमुख तैल महाराजकेलगाया। मांस,हड्डी,चमड़ा और रोमोको सुख देने वालीचार प्रकारकी संवाहनासे और मृदुत्मध्य और दृढ़--तीन प्रकारके
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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