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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व अपनी कान्तिसे आकाशको पल्लवित करने वाली दो अगूठियाँ उसने पहनी थीं। वे सर्पके फण जैसी शोभा वाले हाथोंकी मणियोंकी तरह सुन्दर मालूम होती थीं। शरीर पर उसने सफ़ेद रंगके महीन कपड़े पहने थे, जो शरीर पर लगाये चन्दनसे अलग न मालूम होते थे। पूर्णिमाका चन्द्रमा जिस तरह चन्द्रिका को धारण करता है ; उसी तरह उसने गंगाके तरङ्ग समूहकी स्पर्धा करने वाला सुन्दर वस्त्र चारों ओर धारण किया था, विचित्र धातुमय पृथ्वीसे जैसे पर्वत शोभता है; उसी तरह विचित्र वर्णके सुन्दर अन्दर के कपड़ोंसे वह शोभता था । मानों लक्ष्मीको आकर्षण करने वाली क्रीड़ा करनेका तीक्ष्ण शस्त्र हो, इस तरह वह महाबाहु वज्र को अपने हाथमें फेरता था और वन्दि जन जयजय शब्दसे दिशाओंके मुखोंको पूर्ण करते थे। इस प्रकार बाहुबलि राजा उत्सव पूर्वक-बड़े ठाट बाट और आन शानसे स्वामीके चरण कमलोंसे पवित्र हुए बाग़के पास आया। इसके बाद आकाशसे जैसे पक्षिराज उतरते हैं, उसी तरह हाथीसे उतर, छत्र प्रभृति त्याग, बाहुबलि बाग़में दाखिल हुआ। वहाँ उसने चन्द्रविहीन आकाश और सुधारहित अमृत कुण्डकी तरह बागीचा देखा ; अर्थात उसने बाग़में प्रभुको न देखा। उसे उनके दर्शनोंकी बड़ी उत्कण्ठा थी। उसने मालियोंसे पूछा"मेरे नेत्रोंका आनन्द बढ़ाने वाले जिनेश्वर कहाँ हैं !” मालियोंने उत्तर दिया-“रात्रिकी तरह प्रभु भी कुछ आगे चले गये। जब हमें यह बात मालूम हुई कि स्वामी पधार गये। तभी
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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