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________________ आदिनाथ चरित्र २५२ प्रथम पवे नमस्कार करते हैं। आत्माराम में मन लगाये रखने वाले, बचन की सवृत्तिसे शोभने बाले और शरीर की सारी चेष्टाओं से निवृत्त रहने वाले; अर्थात् इन तीन गुप्तियों को धारण करने वाले आपको हम नमस्कार करते हैं।" प्रभु और उनके साथियों का भूख प्यास आग सहन करना। इस तरह प्रभु की स्तुति करके जन्माभिषेक काल की भांति देवता नन्दीश्वर द्वीपमें जाकर अपने अपने स्थानों को गये । देवता ओं की तरह भरत और बाहुवलि प्रभृति भी प्रभुको प्रणाम करके, बड़े कष्टके साथ अपने अपने स्थानों को गये और दीक्षा लिये हुए कच्छ और महाकच्छ प्रभृति राजाओंसे घिरे हुए एवं मौन धारण किये हुए भगवान् ने पृथ्वी पर विहार करना आरम्भ किया। पारणेके दिन भगवान् को कहींसे भी भीख न मिली। क्योंकि उस समय लोग भिक्षादान को नहीं समझते थे; एक दम सरल स्वभाव थे। भिक्षार्थ आये हुए प्रभुको पहले की तरह राजा समझकर कर, कितने ही लोग उन्हें सूर्यके घोड़े उच्चैश्रवा को भी चालमें परास्त करने वाले घोड़े देते थे। कोई कोई उन्हें शौर्यसे दिग्गजों दिशाओंके हाथियों को जीतने वाले हाथी भेंट करते थे। कोई कोई रूप और लावण्यसे अप्सराओंको जीतने वाली कन्यायें अर्पण करते थे। कोई कोई चपला की तरह चमकने वाले गहने और ज़ेवर प्रभुके आगे रखते थे। कोई कोई सन्ध्या कालके अभ्र
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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