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________________ प्रथम पर्व २४६ आदिनाथ चरित्र एवं पुत्री ब्राह्मी और सुन्दरी तथा अन्य स्त्रियाँ-हिमकण सहित पद्मिनी या बर्फ के कणों सहित कमलिनी की तरह-मुखों पर आँसुओं की बूंदों सहित प्रभुके पीछे-पीछे चल रही थीं। पूर्वजन्मके सिद्धि विमानके जैसे सिद्धार्थ नामके पाग़में प्रभु पधारे ; अर्थात् जिस बाग़में प्रभु पधारे, उसका नाम सिद्धार्थ उद्यान था और वह प्रभुके पूर्व जन्म के सर्वार्थ सिद्ध विमान जैसा मालूम होता था। ममता रहित मनुष्य जिस तरह संसारसे निवृत्त होता है : उसी तरह नाभिनन्दन पालकी रूपी रत्न से वहाँ अशोक वृक्षके नीचे उतरे और कषायों की तरह वस्त्र, माला और गहने उन्होंने तत्काल त्याग दिये। उस समय इन्द्रने प्रभुके पास आकर, मानो चन्द्रमा की किरणोंसे बना हो ऐसा उज्ज्वल और महीन देवदुश्य वस्त्र प्रभुके कन्धे पर डाल दिया। प्रभुका चारित्र ग्रहण । इसके बाद चैतके महीनेमें कृष्ण पक्षकी अष्टमी को चन्द्रमा उत्तराषाढा नक्षत्रमें आया था। उस समय दिन के पिछले पहरमें, जय जय शब्दके कोलाहल के मिषसे हर्षोद्गार करते हुए देव और मनुष्योंके सामने, गोया चारों दिशाओं को प्रसाद देनेकी इच्छा हो, इस तरह प्रभुने अपनी चार मुट्ठियों से अपने बाल नोच लिये। सोधर्मपति ने प्रभुके केश अपने वस्त्रके आँचल में हो लिये, उससे ऐसा मालूम होने लगा मानो इस कपड़े को दूसरे रंगके तन्तुओंसे मण्डित करता हो । प्रभुने ज्योंही पांचवीं मुट्ठीसे
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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