SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व १६३ आदिनाथ-चरित्र करताहूं । हे प्रभु! यह मुहर्त भी बन्दना करने योग्य है । क्योंकि इस मुहूर्त में धर्मको जन्म देने वाले--अपुनर्जन्मा-फिर जन्म ग्रहण न करने वाले-विश्व-जन्तुओंको जन्म के दुःखसे छुड़ाने वाले– आपका जन्म हुआ है। हे नाथ ! इस समय आपके जन्माभिषेक के जलके पूट से प्लावित हुई है और बिना यत्न किये जिसका मल दूर हुआ है, ऐसी यह रत्न :भा पृथ्वी सत्य नाम वाली हुई है। हे प्रभु!जो आपकारात-दिन दर्शन करेंगे, उनका जन्म धन्य है! हम तो अवसर आने पर ही आपके दर्शन करने वाले हैं। हे स्वामि ! भरतक्षेत्र के प्राणियों का मोक्षमार्ग ढक गया है। उसे आप नवीन पान्थ या पथिक होकर पुनः प्रकट कीजिये । हे प्रभु! आप की अमृत-तुल्य धर्मदेशना की तो क्या बात है, आपका दर्शनमात्र हो प्राणियों का कल्याण करनेवाला है। हे भवतारक ! आपकी उपमा के पात्र कोई नहीं, जिससे आपकी उपमा दी जाय ऐसा कोई भी नहीं; इसलिये मैं तो आपके तुल्य आप ही हो ऐसा कहता हूँ: तो अब अधिक स्तुति किस तरह की जाय ? हे नाथ ! आपके सत्य अर्थको बतानेवाले गुणों को भी मैं कहने में असमर्थ हूँ, क्योंकि स्वयंभूरमण समुद्र के जल को कौन माप सकता है ?" इन्द्र द्वारा आदिनाथ भगवान्के लालन पालन और मन बहलावके उपाय । प्रभुका जन्मोत्सव करके उनको उनके स्थान में छोड़ना इस प्रकार जगदीश की स्तुति करके, प्रमोद से सुगन्धित
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy