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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व राजपुत्र का जीव बाहु नाम का दूसरा पुत्र हुआ। मन्त्री-पुत्र का जीव सुबाहु नाम का तीसरा पुत्र हुआ। श्रेष्ठी-पुत्र और सार्थेश पुत्रके जीव पीठ और महापीठ नाम के पुत्र हुए। केशव का जीव सुयशा नाम का अन्य राजपुत्र हुआ। वहाँ सुयशा बचपनसे ही वज्रनाभ का आश्रय करने लगा। कहा है पूर्वजन्मसे सम्बद्ध हुआ स्नेह बन्धुत्वमें ही बाँधता है, अर्थात् जिन में पूर्व जन्म में प्रीति होती हैं, उनमें इस जन्म में भी प्रीति होती ही है--पूर्व जन्म की प्रीति इस जन्म में भी घनिष्टता ही कराती है। मानो छः वर्षधर* पर्वतों ने पुरुष रूपमें जन्म लिया हो, इस तरह वे राजपुत्र और सुयशा अनुक्रम से बढ़ने लगे। वे महा पराक्रमी राजपुत्र बाहर के रास्तों में घोड़े कुदाते थे, इस से अनेक रूपधारी रेवन्त के विलास कोधारण करने लगे। कलाओं का अभ्यास कराने में उनके कलाचार्य साक्षीभूत ही हुए। क्योंकि महान पुरुषों या बड़े लोगों में गुण खुद-बखुद ही पैदा होजाते हैं; सिखाने को विशेष कष्ट उठाना नहीं पड़ता। शिला की तरह बड़े-बड़े पर्वतों को वह अपने हाथों से तोलते थे। इससे उन की बल-क्रीड़ा किसी से पूरी न होती । इसी बीच में लोकान्तिक देवताओं ने आ ® वर्ष क्षेत्र धर=धारणा करनेवाला, अतः वर्ष धर-क्षेत्र को धारण करनेवाला। चुल, हिमवन्त, महा हिमवन्त, निषध, शिखरी, रूपी और नीलवन्त, ये है भरत हीमवन्तादि क्षेत्रों को जुदा करते हैं, इससे वर्षधर पर्वत कहलाते हैं। ____+ लोकान्तिक देवताओं का ऐसा सनातन प्राचार ही है। अर्थात सदा से उनकी वही रीति है।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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