SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पान्तर्वाच्यः ] त्रयः समितयः __ [५ दग-घट्ट तिण्णि-सत्त व उडुवासासु न हणंति तं खित्तं । चउरट्ठाइ हणंति जंघ-द्विक्को अवरेण ॥६८५॥ आयामए त्ति..... . आयामाइ सुच्छ्रुत्ती कायव्वा नेव जेण अच्छत्ती। अमली नामा देवी साऽणेग-ट्ठाण-वासहरा ।।६८६॥ अणेगट्ठाण सुसाणे मच्छाइ-मरण-संभव-नई। जह य पवित्तं नीरं पवित्ता तह इमा नेया।।६८७॥ पोहीसकोरवच्छग मिगनाहि-पट्टकूलगाणि इह। कुतुपाइ-घयणाहर बद्धसुप्पकरवत्तयाई।।६८८॥ कंबल-गोरोयण-करि-दंत-नहज बाहि से घर-खजूरा। दीवाइ गुड-पमुहा एसिं छुत्ती न किज्जइ य॥६६॥ उक्तं च वुट्ट य घुग्घरीबक्कला य अण्णं पि अद्धसिद्धं वा। जह होइ इह न छुती तज्जलमवसामणाइ तहा।।६६०॥ निरीथ भाष्ये....५३६ गाथा उस्सेयम संसेयम तंदुल तिल तुस जवोदगाऽऽयाम । सोवीर सुद्ध-वियडं अंबय अंबाडग कविटुं । ६६१॥ माउलिंग-दक्ख-दाडिम-खजूर-नालियर-कयर-बोरजलं। आमलगं चिंचा पाणगाइ पढमंग-भणियाई॥६६२॥ श्री आचाराने... इच्चाइ-बहु-वत्तव्वं अत्यि सत्ये वियाणिया। माही लेह मुहरसाया दियरेसिं जरवाणियं ॥६६३॥ सड जण जोइय घय भत्तं गुरु जोइयं च चूरमिगं। गिण्हाविंति य गुरवो साहूणं निविगइंयमि ।। ६६४॥ जीहा लोल वसाओ नीरसमवसावणाइ नीरं च। असणाहारतया जे पभणंति का गई तेसिं ॥६६५॥ तिदंडोगालियं गिझं उण्हं नो य कवोसणं। नीरं च मिस्स-दोसाओ ओहणिज्जुत्ति-भासणा॥६६६॥
SR No.023172
Book TitleKalpantarvcahya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradyumnasuri
PublisherSharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy