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________________ कल्पान्तर्वाच्यः ] नागकेतुकथा इय वुत्तुं सो य गओ निविग्धं जाणिऊण नरनाहो। वंदइ सक्कारेइ य नागकेउं च सविसेसं ।। १००॥ एगदिणे जिणगेहे नागकेऊ करेइ जिणपूयं। कुसुमवर-नाल-मज्झ-ट्ठिएण सप्पेण सो खद्धो ।। १०१॥ एगते तं मुत्तुं विस-पसरं जाणिऊण संथारे। जिणमुहविदिण्ण-दिट्ठी चिट्ठइ सुहझाणसंजुत्तो॥१०२॥ घाइय-कम्म-चउक्कं खविऊणं सुक्क-झाण-संजुत्तो। पत्तो केवलनाणं सुहभावा नागकेउ मुणी॥१०३॥ सासणदेवीइ तया जइ-लिंगं आणिऊण से दिण्णं । विहरेइ भवि-कमलाइं पडिबोहंतो य मुणि-पवरो ।। १०४ ॥ इह लोए पर-लोए जं वत्थु दुल्लहं हवइ किंचि। तं तवसा पाविज्जइ जत्तं कुव्वेह तम्मि सया॥१०५॥ इइ नागकेउ-कहा।। सव्व नईणं जा हुज्ज वालुया सव्व-उदहीण जं तोयं । तत्तो अणंत-गुणिओ अत्थो इक्कस्स सुत्तस्स ।। १०६॥ वयणे जीहाण सयं जइ उ भवे निम्मलं च मे नाणं । तह वि हु कप्पसुयस्स य सुयत्थ-पारं न गच्छामि ।। १०७॥ एयं सिरिकप्पसुयं दसासुयक्खंधमट्ठमज्झयणं। सिरिभद्दबाहु-गुरुणा उद्धरियं नवम-पुव्वाओ।। १०८ ॥ पूर्व-मानं इग-दु-चउ-अट्ठ-सोलस-दुतीस-चउसट्टि-इगसयडवीसं। दुसयछप्पन्न-पणसया बारस इगसहस्स चउवीसं ॥ १०६॥ दुसहसडयालीसं छण्णवइ अहिय सहस्स चत्तारी। दुनवइ इगसयसमहिय अट्ठसहस्सा य सव्वग्गं॥११०॥ तेसीय-तिसय-समहिय-सोल सहस्सा य करिवरा सव्वे। झय-अंबाडी-सहिया कजल-रासी य तावइया॥१११॥ मेलित्ता पुव्वाणं लिहणं किजइ पमाणमेयं तु। न कयाइ केण लिहिया करि-दिटुंतेण कयमाणा ॥११२॥
SR No.023172
Book TitleKalpantarvcahya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradyumnasuri
PublisherSharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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