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________________ ४० सोमसेनभंद्वारकाविरचित आचमनं सदा कार्य स्नानेन रहितेऽपि च । आचमनयुतो देही जिनेन शौचवान्मतः ॥ ७७ ॥ स्नान न करने पर भी आचमन अवश्य करे। क्योंकि आचमनयुक्त प्राणीको श्रीजिनदेवने शुद्ध माना है ॥ ७७ ॥ 1 सन्ध्याया लक्षणं मुद्रा आचमस्यापि लक्षणम् । कथयिष्यामि चाग्रेऽहं स्वानस्य विधिरुच्यते ॥ ७८ ॥ संध्या और आचमनका लक्षण तथा मुद्राओंको आगे चलकर कहेंगे । यहाँ अब स्नानकी विधि बताते हैं ॥ ७८ ॥ तैलस्य मर्दनं चादौ कर्तव्यमन्यहस्तकैः । यथा सर्वाङ्शुद्धिः स्यात्पुष्टिश्वापि विशेषतः ।। ७९ ।। स्नान के पहले दूसरेसे तैलका मालिश करावे । इससे सारे शरीरकी शुद्धि होती है तथा शरीर भी पुष्ट होता है ॥ ७९ ॥ पात्रदानं स्वहस्तेन परहस्तेन मर्दनम् । तिलकं गुरुहस्तेन मातृहस्तेन भोजनम् ॥ ८० ॥ पात्रों को दान हमेशा अपने हाथसे दे, दूसरेके हाथसे तैलकी मालिश करावे, गुरुके हाथसे तिलक करावे और माताको परोसा भोजन करे ॥ ८० ॥ तेलमर्दन विधि | अष्टम्यां च चतुर्दश्यां पञ्चम्यामर्कवासरे । व्रतादीनां दिनेष्वेव न कुर्यात्तैलमर्दनम् ॥ ८१ ॥ अष्टमी, चतुर्दशी, पंचमी, रविवार और व्रतके दिनोंमें तेलकी मालिश न करे ॥ ८१ ॥ चरे विल शशिजीवभौमे, रिक्तातिथौ स्यादुभये च पक्षे । तैलावलेपं तु मृदाविधृत्यं ( 2 ) स्नानं नराणां विरुजत्वकारि ॥ ८२ ॥ चरल, सोमवार, बृहस्पति वार, दोनों पक्षोंकी रिक्त तिथि इन दिनोंमें तेल मालिश करके स्नान करना नीरोरोताका कारण है ॥ ८२ ॥ हस्ते ऐन्द्रे च रेवत्यां सौम्ये चार्द्रापुनर्वसौ । स्नातो तान्वितो जीवो व्याधिना नैव बाध्यते ॥ ८३ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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