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________________ नवकारान्यतो माशः पापस्य प्रविजापते । पौष्टिक कमैमें प्रातःकालीन समय, नैर्ऋत्य दिशा, कमलासन, ज्ञानमुद्रा, चाँद जैसा वर्षे, मोतियोंकी माला, सफेद पुष्प, सफेद वस्त्र और अन्तमें “स्वधा " यह पल्लव होना चाहिए । हर एक मंत्रका जप दक्षिण आतसे एकसौ आठ वार करे । इस तरह मंत्रोंके नपनेसे पापका नाश होता है । भावार्थ-इन मंत्रोंमें जो जो समय बताया गया है उस उस समयमें मंत्रका जप करना चाहिए और जो दिशाएँ कही गई हैं उन दिशाओंमें मुख करना चाहिए, जो आसन लिखे गये हैं उन आसनोंसे बैठना चाहिए इत्यादि ॥ १०२-१०३-१०४ ॥ तर्जन्यङ्गुष्ठयोगेन विद्वेषोच्चाटने जपः॥ १०५॥ कनिष्ठङ्गुिष्ठकाभ्यां तु कर्म शत्रुविनाशने । अङ्गुष्ठानामिकाभ्यां तु जपेदुत्तमकर्मणि ॥ १०६ ॥ . अंगुष्टमध्यमाभ्यां तु जपेदाकृष्ठकर्मणि । विद्वेष-उच्चाटन करना हो तो तर्जनी और अँगूठेसे माला पकड़ कर जप करें । यदि शत्रुका विनाश करना हो तो कनिष्ठा और अँगूठेसे माला पकड़ कर जाप देवे । यदि उत्तम कार्य करना हो तो अनामिका और अंगुष्ठसे जाप करे । और आकर्षण कर्ममें अँगूठे और बीचकी उँगलीसे जाप करे ॥ १०५-१०६॥ माला सुपञ्चवर्णानां रत्नानां सर्वकार्यदा ॥ १०७ ।। स्तम्भने दुष्टसन्नाशे जपेत प्रस्तरकर्करान् । शत्रूचाटे च रुद्राक्षा विद्वेषेऽरिष्टबीजजा ॥ १०८ ॥ स्फाटिकी सूत्रजा माला मोक्षार्थिनां तु निर्मला । पाँच रंगके रत्नोंकी माला सभी तरहके कार्योंको सिद्ध करती है। कंकड़ोंकी माला स्तम्भनकर्म और शत्रुके वशीकरणमें काम देती हैं । रुद्राक्षकी मालासे शत्रुका उच्चाटन होता है । विद्वेष-कर्ममें अरीठेके बीजोंकी माला मानी गई है । तथा मोक्षार्थियोंके लिए स्फटिक मणियोंकी और सूतकी माला उत्तम कही है । भावार्थ-कोई कार्य करना हो तो उसमें जिस जिस प्रकारकी माला बताई गई है उसके द्वारा जप करे ।। १०७-१०८॥ धर्मार्थकाममीक्षार्थी जपेद्वै पुत्रजीवजाम् ॥ १०९ ॥ --शान्तये पुत्रलाभाय जपेदुत्पलमालिकाम् । पद् कर्माणि तु प्रोक्तानि पल्लवा अत उच्यते ॥ ११० ॥ १ अँगूठेके पासकी उँगली । २ अन्तको चिट्ठी उँगली । चिट्ठीके पासकी उँगली ।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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