SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णिकाचार। रखकर ले जावें, शवका मस्तक ग्रामकी तरफ रक्खें। एक मनुष्य उखानल लेकर (हांडिमें भमि रखकर ) चले। कुटुंबीजन विमानके आगे चलें । अन्य सब लोग और स्त्रियां भी विमानके पीछे पीले गमन करें ॥ १३६ --१३८॥ विमानमवरोह्याथ मार्गस्यार्धे निवेश्य च । विवृत्य तन्मुखं स्वीयो मुहुस्तोयैस्तु सिञ्चयेत् ॥ १३९ ॥ प्रमादपरिहारार्थ परीक्ष्यैवं प्रयत्नतः। स्मशानाभिमुखं पश्चानीत्वा तत्रावरोह्य च ॥ १४० ॥ ततः संस्थितमुद्धृत्य चितायां पूर्वदिङ्मुखम् । उपवेश्योत्तरास्यं वा मुखरन्ध्रेषु सप्तसु ॥ १४१ ॥ सुवर्णेनोद्धृतं सर्पिदेधि च स्पर्शयेत्ततः। अक्षताँश्च तिलाँश्चापि मस्तके प्रक्षिपदनु ॥ १४२ ॥ भाधी दूर चले जानेपर विमानको कंधेपरसे उतारकर नीचे रक्खें। वहां उसका कोई आत्मीर पुरुष उसके मुखपरका वस्त्र हटाकर मुख में थोड़ासा पानी सींचे । अनन्तर सावधानीके साथ देख-भालकर. विमान उठावें । इस समय मृतकका सिर स्मशानकी ओर करें । वहां उसे लेजाकर नीचे उतारें, विमानमें स्थित उस शवको उठाकर चितामें बैठावें, पूर्व दिशाकी और या उसर दिशाकी ओर उसका मुख करें । दोनों आंखें, नासिकाके दोनों विवर और मुख एवं सात छेदोंमें सुवर्णकी सलाई उठाकर घृत और दहीका स्पर्श करावें । अनन्तर उसके मस्तकपर अक्षत और तिल क्षे॥१३९.१४२॥ एकवारं जलं सव्यधारया पातयेत्ततः । द्विवारमपसव्येन सनालकलशात् स्वकः ॥ १४३ ॥ ततोऽति सर्वबन्धूनां पर्ययास्तु त्रयो मताः। .. पूर्वान्त्यौ सव्यवृत्त्यैव मध्यमस्त्वपसव्यतः ॥ १४४ ॥ मुक्तकेशाः कनिष्ठा ये प्रलम्बितकरद्वयाः। पर्ययद्वितयं कुर्युस्तृतीयं वृद्धपूर्वकाः ॥ १४५ ॥ इसके बाद वही आत्मीय बंधु, नालदार कलश (भंगार-झारी)से एक बार बायें हाथसे जासींचे और दो बार दाहिने हाथसे साँचे। फिर उपस्थित सब बंधओंका तीन पर्यय (पार्टी) बनाया जाय । पहली पार्टी और तीसरी पार्टीके बंधु बायें हाथ से और दूसरी पार्टीवाले दाहिने हाथसे जलधारा दें। पहली पार्टी छोटे छोटे बालकोंकी बनावे, वे अपने सिरके बाल खुले रक्खें। दूसरी पार्टी मध्यम वयवालोंकी बनावे, ये अपने दोनों हाथ लंबे लटकाकर रक्खें तथा तीसरी पार्टी वृद्धपुरुषों की बनावे ॥ १४३-१४५ ॥ ततः प्रदक्षिणीकुर्याच्चितापावें परिस्तरम् । खादिरैरिन्धनैरन्यैरथवा हस्तविस्तृतम् ।। १४६ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy