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________________ सोमसेनभट्टारकविरचित । भ्रातृपत्नी भाबी अपनी ननँदका और भगिनीपति- बहनोई अपने सालेका जिस समय मरण सुनें उस समय वे स्नान अवश्य करें तथा कुटुंबके लोग भी स्नान करें ॥ ११६ ॥ मातामहो मातुलथ म्रियते वाथ तत्त्रियः । दौहित्र भागिनेय पित्रो म्रियते स्वसा ॥। ११७ ।। स्वगृहे त्र्यहमाशौचं परत्र स्यात् पक्षिणी । श्रुतं वहिर्दशाहाच्चेत्स्नानेनैव च शुद्ध्यति ॥। ११८॥ ३८४ मातामह-माताका पिता, मातुल- माताका भाई, उनकी स्त्रियां, दोहिता-पुत्रीका लड़का, भागनेय-बहनका लड़का और माता-पिताकी बहिनें, ये सब अपने घरपर मरें तो तीन दिनका आशौच है और अपने घर अन्यत्र मरें तो पक्षिणी आशौच है। तथा दश दिन बाद इनका मरण सुनें तो स्नान मात्रसे शुद्धि है। भावार्थ- नाना और नानी, मामा और मामी, दोहिता और भानजा तथा मौसी और भुआका अपने घरपर मरनेका तीन दिन आशौच है और अन्यत्र मरनेका पक्षिणी आशौच है । तथा दशदिन से ऊपर मरण सुने तो स्नानमात्रसे शुद्धि है ॥ ११७-११८ ॥ व्याधितस्य कदर्यस्य ऋणग्रस्तस्य सर्वदा । क्रियाहीनस्य मूर्खस्य स्त्रीजितस्य विशेषतः ॥ ११९ ॥ व्यसनासक्तचित्तस्य पराधीनस्य नित्यशः । श्राद्धत्यागविहीनस्य षण्ढपापण्डपापिनाम् ॥ १२० ॥ पतितस्य च दुष्टस्य भस्मान्तं सूतकं भवेत् । यदि दग्धं शरीरं चेत्सुतकं तु दिनत्रयम् ॥ १२१ ॥ महारोगसे पीड़ित, कदर्य (कंजूस), कर्जदार, आचरणहीन, मूर्ख, स्त्रीके वशीभूत, व्यसनी, पराधीन, श्राद्धत्यागी, दान न देनेवाला, नपुंसक, पाषंडी, पापी, जातिच्युत और दुष्ट, इनके मरणका सूतक, भस्मान्त - जबतक शरीर दग्ध न हो तब तक है। यदि इनके शरीरका दग्ध स्वयं करे तो तीन दिनका सूतक है | भावार्थ- व्याधित, कदर्य, ऋणग्रस्त आदि ये शब्द साधारण हैं; अतः साधारण अवस्था में भी इनका प्रयोग देखा जाता है और विशेष विशेष अवस्थाओं में भी इन्हींका प्रयोग होता है । ऐसी दशा में जिन्हें आगम-वाक्यका श्रद्धान नहीं, जो सूतक जैसे विषयोंको मानना ही नहीं चाहते वे इन शब्दोंको मामूली से मामूली हालतोंपर घटित करने लग जाते हैं अतः बुद्धिमानोंका कर्तव्य है कि वे इन शब्दोंकी योजना खास खास स्थलोंमें करें ॥ ११९-१२१ ॥ व्रतिनां दीक्षितानां च याज्ञिकब्रह्मचारिणाम् । नैवाशौचं भवेत्तेषां पितुश्च मरणं विना ॥ १२२ ॥ व्रती, दीक्षित, याज्ञिक और ब्रह्मचारी, इनको पिता मरणको छोड़कर सूतक नहीं है ॥ १२२ ॥ श्रोत्रियाचार्यशिष्यषिशास्त्राध्यायाश्च वै गुरुः । मित्रं धर्मी सहाध्यायी मरणे स्नानमादिशेत् ॥ १२३ ॥ श्रोत्रिय, आचार्य, शिष्य, ऋषि, शास्त्र - पाठक, गुरु, मित्र, साधर्मी और सहाध्यायी ( साथ पढ़नेवाला) इनकी मृत्यु होनेपर स्नान करना चाहिए ॥ १२३ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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