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________________ श्रेणिकांचार । बंभर्णसुद्दत्थीओ रयस्सलाओ छिवंति अण्णोष्णं । पढमा सव्वकिरिच्छं चरेश इदरा च दाणादि ॥ ३ ॥ रजस्वला ब्राह्मणी और रजस्वला शूद्राणी यदि परस्पर में छू जांय तो ब्राह्मणी चार उपवास करे और शूद्राणी दान आदि दे । खंसियवाणमहिलाओ रयस्सलाओ छिवंति अण्णोष्णं । तो पढमद्धकिरिच्छं पादकिरिच्छं परा चरइ || ४ || • रजस्वला क्षत्राणी और रजस्वला बनियाइन यदि परस्परमें छू जांय तो क्षत्राणी दो उपवास करे और बनियाइन एक उपवास करे । खत्तिय सुद्दित्थीओ रयस्सलाओ छिवांत अण्णोष्णं तो पाहूणं पढमा पाइकिरिच्छं परा चरइ ॥ ५ ॥ ३७१ रजस्वला क्षत्राणी और रजस्वला शूद्रा यदि परस्पर में छू जांय तो क्षत्रियाणी तीन उपवास करे और शूद्रा एक उपवास करे । वाणियसुद्दित्थी ओ रयस्सलाओ छिबंति अण्णोष्णं । तो खवणतिगं पढमा चरई परा खमणमेगं तु ॥ ६ ॥ रजस्वला वैश्या और रजस्वला शूद्रा यदि परस्परमें छू जांय तो वैश्या तीन उपवास करे और शूद्रा एक उपवास करे ॥ २७ ॥ सूतकं प्रेतकं वाऽघमन्त्यस्पर्शनमेव वा । मध्ये रजसि जातं चेत्स्नात्वा भुञ्जीत पुष्पिणी ॥ २८ ॥ रजस्वला होते हुए भी जननाशौच या मरणाशौच हो जाय अथवा चांडाल आदि नीच जातिका स्पर्श हो जाय तो वह रजस्वला स्नान करके भोजन करे ॥ २८ ॥ आर्तवं भुक्तिकाले चेदन्नं त्यक्त्वाऽऽस्यगं च तत् । स्नात्वा भुञ्जीत शङ्का चेत्परं स्नानेन शुद्ध्यति ॥ २९ ॥ मध्ये स्नानं तु कार्य चेतद्भवेदुद्धतैर्जलैः । नावगाहनमेतस्यास्तडागादौ जले तदा ॥ ३० ॥ भोजन करते समय यदि रजस्वला हो जाय तो मुखके ग्रासको उसी समय थूक दे और स्नान कर भोजन करे । रजस्वला होनेकी आशंका हो जाय तो भी स्नान करनेसे शुद्ध होती है । बीचमें ही स्नान करना हो तो कुआ, बावड़ी, तालाब आदि ने जल पृथक लेकर स्नान करे। उस समय यह रजस्वला तालाब वगैरह में स्नान न करे ।। २९-३० ॥ १ ब्राह्मणशूद्रस्त्रियौ रजः स्वले स्पृशतः अन्योन्यं । प्रथमा सर्वकृच्छ्रं चरति इतरा च दानादिकं ॥ २ क्षत्रियवणिग्म हिले रजः स्वले स्पृशतः अन्योन्यं । तर्हि प्रथमा अर्धकृच्छ्रं पादकृच्छ्रं परा चरति ।। ३ क्षत्रिय शूद्रस्त्रियौ रजः स्वले स्पृशतः अन्योन्यं । तदा पादोनं प्रथमा पादकृच्छ्रं परा चरति ॥ ४ वणिग्छूद्रस्त्रियौ रजः स्वले स्पृशतः अन्योन्यं । तदा क्षमणत्रिकं प्रथमा चरति परा क्षमणमेकं तु ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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