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________________ त्रैवर्णिकाचार । प्रथम विवाहिता सजाति स्त्री धर्मएत्नी होती है और द्वितीय विवाहिता भोगपत्नी होती है। यह ऊपर कह आये हैं । इन दो स्त्रियोंके होते हुए तीसरा विवाह न करे । कदाचित् तीसरा विवाह करे भी तो अर्क-विवाह किये बिना न करे क्योंकि अर्क-विवाह किये बिना तीसरा विवाह करनेसे वह तृतीय विवाहिता वैधव्य दीक्षाको प्राप्त हो जाती है । अतः विचक्षण पुरुषोंको अर्क-विवाह करके ही तीसरा विवाह करना चाहिए ॥ २०४ ॥ - अर्क-विवाह-विधि। अर्कसान्निध्यमागत्य कुर्यात्स्वस्त्यादिवाचनाम् । अर्कत्याराधनां कृत्वा सूर्य सम्पार्थ्य चोरहेत ॥ २०५॥ अर्क वृक्षके पास आकर स्वस्तिवाचन आदि विधि करे। अनन्तर अर्क वृक्षकी आराधना कर तथा सूर्यसे प्रार्थना कर अर्क वृक्षके साथ विवाह करे ॥ २०५ ॥ - विवाहयुक्तिः कथिता समस्ता संक्षेपतः श्रावकधर्ममार्गात । श्रीब्रह्मसूत्रप्रथितं पुराणमालोक्य भट्टारकसोमसेनः ॥ २०६॥ श्रीब्रह्मसूरि निर्मित पुराणको देखकर मुझ सोमसेन भट्टारकने श्रावकधर्मके अनुकूल यह सम्पूर्ण विवाहविधि संक्षेपसे कही है ॥ २०६ ॥ इति श्रीधर्मरसिकशास्त्रे त्रिवर्णाचारनिरूपणे भट्टारकसोमसेनविरचित विवाहविधिवर्णनो नाम एकादशोऽध्यायः ॥११॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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