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________________ ११ पैरोंतक "पृष्ठ सं० पंक्ति सं० अशुद्धियां । शुद्धियां। ५० पुण्य-पापक पुण्यपापका ५० मुक्तिका होना मुक्तिका होना इत्यादि गौत गौत.. सहज यह जल कोई भी बात सत्य न ठहरेगी- ऐसे कितने ही विषय हैं जो समझमें नहीं आते हैं । ऐसी दशामें वे सब असत्य ही ठहरेंगे। पांछ पौंछ कछौटा लगानेवाला कछौटा लगाने वाला, कछौटा न लगाने वाला नीले रंगका या लाल रंगका नीले रंगका शूद्रों द्वारा कारु शूद्रों द्वारा शूद्रों द्वारा कारु शूद्रों द्वारा और मंत्रस्नान और मानसस्नान परातेंक या टेढ़ा-मेढ़ा होकर या झुककर आचमन करनेके बाद ( इतना पद नहीं होना चाहिए ) समग्र समुद्र विदी बदी चार्धमष्टाविंशतिक चार्धं सप्तविंशतिक शब्दके शब्दोंके विद्याके कारण विद्यासंबंधी ऊपरि उपरि यक्ष यक्ष यक्षी उनके तर्पण ॐ हीं अर्ह जयायष्ट इत्यादि उनके तर्पण यह उनको नमस्कार ॐ हीं अर्ह असि आ इत्यादि नमस्कार इन श्लोकोंमें ऊंच नीच इन श्लोकोंमें ऊंच जातिके मनुष्यों दोनों तरहके मनुष्योंको न को भी न ५ करना है। करना है तथा जो छूने योग्य नहीं हैं उन्हें किसी भी हालतमें न छूवे। १५ यक्षी
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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