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________________ त्रैर्णकाचार | २९७ व्रतधारी पुरुषोंमें अग्रेसर गणधरादि देव, दिशाओंकी मर्यादाके भीतर भीतर प्रयोजन-रहित पापके कारणोंसे विरक्त होनेको अनर्थदण्ड- विरति व्रत कहते हैं ।। ९२ ॥ अनर्थदण्डव्रत के पांच भेद । पापोपदेशहिंसादानापध्यानदुःश्रुतीः पञ्च । माहुः प्रमादचर्यामनर्थदण्डानदण्डधराः ।। ९३ ।। प्रयोजनरहित कार्योंको न करनेवाले पुरुष, पापोपदेश, हिंसादान, अपध्यान, दुःश्रुति और प्रमादचर्या, इन पांचको अनर्थदण्ड कहते हैं । भावार्थ - इन पांच कामोंको करना अनर्थदण्ड है ॥ ९३ ॥ पापोपदेश | तिर्यक्लेशवणिज्याहिंसारम्भप्रलम्भनादीनाम् । कथाप्रसङ्गप्रसवः स्मर्तव्यः पाप उपदेशः ।। ९४ ॥ तिर्यग्वणिज्या, क्लेशवणिज्या, हिंसा, आरंभ, प्रलंभन ( ठगाई) आदि कथाओंके प्रसंग उठाने को पापोपदेश नामा अनर्थदण्ड कहते हैं ॥ ९४ ॥ हिंसा - दान | परशुकृपाणखनित्रज्वलनायुधगृङ्गशृङ्खलादीनाम् । वहतूनां दानं हिंसादानं ब्रुवन्ति बुधाः ।। ९५ । फरसा, तलवार, कुदाली, अमि, आयुध, सींग, शांकल आदि हिंसा के कारणोंके देने को बुद्धिमान पुरुष, हिंसादान नामा अनर्थदण्ड कहते हैं ॥ ९५ ॥ अपध्यान । वधबन्धच्छेदादेर्देषाद्रागाच्च परकलत्रादेः । अध्यानमपध्यानं शासति जिनशासने विशदाः ।। ९६ ।। द्वेष तथा रागसे दूसरेकी स्त्री, पुत्र आदिके मरजाने, बँध जाने, कट जाने आदिका चिन्तवनं करनेको जिन-शासनमें कुशल पुरुष अपध्यान नामा अनर्थदण्ड कहते हैं ॥ ९६ ॥ दुःश्रुति । आरम्भसङ्गसाहसमिथ्यात्वद्वेषरागमदमदनैः । चेतः कलुषयतां श्रुतिरवधीनां दुःश्रुतिर्भवति ॥ ९७ ॥ आरंभ, परिग्रह, साहस, मिथ्यात्व, द्वेष, राम, मद और मदन ( काम ) द्वारा चित्तको मलिन करनेवाले शास्त्रोंका सुनना दुःश्रुति नामा अनर्थदण्ड है ।। ९७ ॥ प्रमादचर्या । क्षितिसलिलदहन पवनारम्भं विफलं वनस्पतिच्छेदम् । सरणं सारणमपि च प्रमादचर्या प्रभाषन्ते ।। ९८ ॥ विना प्रयोजन जमीन खोदना, पानी उछालना, अग्नि जलाना, हवा करना, वनस्पती तोड़ना, घूमना और औरों को घुमाना, इन सबको प्रमादचर्या नामा अनर्थदण्ड कहते हैं ॥ ९८ ॥ ३८
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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