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________________ ३६६ विषय. पृष्ठ. विषय. यतिभोजनके अन्तराय ३५१ सूतकके भेद ३६६ दूसरे अन्तराय ३५२ आर्तवसूतकके भेद मूलाचारोक्त अन्तराय ३५२ प्रकृत और विकृत सूतकके लक्षण ३६७ चौदह मल ३५३ अकालका लक्षण ३६७ छयालीस अंतराय ३५३ आर्तवसूतकधारणप्रकार ३६७ अन्तराय पालनेका उपदेश ३५३ अठारह दिन पहले रजस्वला होने . मुनिके योग्य भोजन ३५४ पर शुद्धिविधि ३६८ चर्याविधि ३५४ द्वितीय मत ३६८ भिक्षा देनेकी विधि ३५४ अठारहवें, उन्नीसवें दिन तथा इनके बाद छयालीस दोष ३५५ रजस्वला हो तो शुद्धिविधि ३६८ औदेशिक दोष ३५५ दैवकर्म और पित्र्यकर्मकी योग्यता ३६८ साधिक, पूति, मिश्र और प्राभृतिक दोष ३५६ रजस्वला स्नान कर पुनः रजस्वला हो जाय . बलि, न्यस्त और प्रादुष्कार दोष ३५७ तो अशुचिताविधि ३६८ क्रीत, प्रामित्य परिवर्तन और निषिद्ध रजस्वलाका आचरण ३६८ दोष ३५८ रजस्वलाकी शुद्धि । अभिहित, उद्भिन्न, आछाय और मालारो- भोजन पान बनानेकी और देवसेवा हण दोष ३६९ धात्री, भृत्य और निमित्त दोष दो रजस्वलाओंके परस्पर संभाषणआदिका वनीपक, और जीवनक दोष प्रायश्चित्त ३६१ क्रोध और लोभ दोष विजाति रजस्वला स्त्रियोंके संभाषणादिक ३६२ पूर्वस्तुति और पश्चास्तुति दोष ३७० वैद्य, मान और माया दोष रजस्वला होते हुए जननाशौच आदि सूतक विद्या और मंत्र दोष ३६२ आजानेपर भोजन विधि चूर्ण और वशीकरण दोष 2 भोजन करते करते रजस्वला हो जाय शंका और पिहित दोष ३६२ २ या रजस्वला होनेकी शंका हो जाय तो संक्षिप्त दोष ३७१ निक्षिप्त, सावित, अपरिणत, साधारण . - प्रथम रजस्वला होने पर जननाशौच और दायक दोष ३६३ आदि सूतक आजानेपर शुद्धि ३७२ लिप्त, मिश्र और अंगार दोष ......- ३६३ ऋतुमतीद्वारा छुई हुई वस्तुओंके विषयमें ३७२ धूम और संयोजन दोष ३६३ रजस्वलाके हाथका भोजन करे तो अप्रमाण दोष ३६३ प्रायश्चित्त ३७२ उपसंहार ३६४ रजस्वलाकी संनिकटताका दोष ३७२ तेरहवां-अध्याय। रजस्वलाके भोजन शयन आदि सूतक-कथन-प्रतिज्ञा ३६६ स्थानोंकी शुद्धिविधि ३७२ ३५९ आदिकी योग्यता | ... ३६९ ३६१ का प्रायश्चित्त ३७१ दोष ३६२ भोजनविधि
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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