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________________ २५८ सोमसेनभट्टारकविरचितअक्षर लिखाते समय यह मंत्र पढ़े। पुस्तकग्रहण विधि। ततश्चाधीतसर्वाणि चाक्षराणि गुरोर्मुखात् । सुदिने पुस्तकं ग्राह्य होमपूजादि पूर्ववत् ॥ १७९ ॥ उपाध्यायं च सम्मान्य वस्त्रभूषैश्च पुस्तकम् । हस्तौ द्वौ मुकुलीकृत्य प्राङ्मुखश्च समाविशेत् ॥ १८० ॥ उपाध्यायेन तं शिष्यं पुस्तकं दीयते मुदा । शिष्योऽपि च पठेच्छास्त्रं नान्दीपठनपूर्वकम् ॥ १८१ ॥ इसके बाद वह बालक गुरुमुखसे उन अक्षरोंको सीखकर शुभ मुहूर्तमें पुस्तक पढ़ना प्रारंभ करे । इस समय भी पहले की तरह होमादि कार्य करे। बालक वस्त्र आभूषण आदिके द्वारा अपने गुरुका सन्मान कर और पुस्तककी पूजा कर दोनों हाथ जोड़ पूरबकी ओर मुख कर बैठे। पाठक महोदय बड़े हर्षसे उस बालकके हाथमें पुस्तक दे और वह बालक-शिष्य भी नान्दीमंगलके पठन पूर्वक उस पुस्तकको पढ़ना आरंभ करे ॥ १७९-८१॥ उपसंहार । गर्भाधानसुमोदपुंसवनकाः सीमन्तजन्माभिधाः। बाह्येयानसुभोजने च गमनं चौलाक्षराभ्यासनम् ॥ सुप्रीतिः प्रियमुद्भवो गुरुमुखाच्छास्त्रस्य संग्राहणं । एताः पञ्चदश क्रियाः समुदिता अस्मिन् जिनेन्द्रागमे ॥ १८२ ॥ कुर्वन्ति धन्याः पुरुषाः प्रवीणाः । आचारशुद्धिं च शिवं लभन्ते ।। भुक्त्वेह लक्ष्मीविभवं गुणाढ्याः। श्रीसोमसेनैरुपसंस्तुतास्ते ॥ १८३ ॥ गर्भाधान, मोद, पुंसवन, सीमन्त, प्रीति सुप्रीति प्रियोद्भव, जातकर्म, नामकर्म, बहिर्यान, उपवेशन, अन्नप्राशन, गमनविधि, व्युष्टिक्रिया, चौलकर्म, अक्षरसंस्कार और पुस्तक-गृहण, ये पन्द्रह क्रियाएं इस अध्यायमें कही गई हैं । भावार्थ-यद्यपि ये क्रियाएं गिनतीमें सत्रह होती हैं, परन्तु प्रीति, सुप्रीति और प्रियोद्भव इन तीन क्रियाओंका एकहीमें समावेश किया गया है। क्योंकि ये क्रियाएं एक साथ ही की जाती हैं, अन्य क्रियाओंकी तरह जुदे जुदे समयोंमें नहीं की जातीं । अतः तीनोंका एकहीमें समावेश कर श्लोकका अर्थ घटित कर लेना चाहिए । अथवा "एता सप्तदशक्रियाः समुदिता अस्मिन् जिनेन्द्रागमे।" इस तरह दूसरे पाठके अनुसार सत्रह क्रियाएं समझना चाहिए। जिन क्रियाओंका नाम श्लोकमें नहीं है, परंतु उनका वर्णन हो चुका है, अतः चकारोंसे उनका भी समावेश कर लेना चाहिए। जो चतुर पुण्यवान पुरुष इन उपर्युक्त पन्द्रह क्रियाओंको करते हैं वे इस लोकमें अटूट संपत्तिका भोगकर आचारशुद्धिको प्राप्त करते हैं और क्रमसे मुनि सोमसेनके द्वारा पूजित होकर मोक्ष-सुखको प्राप्त करते हैं। इति श्रीधर्मरसिकशास्त्रे त्रिवर्णाचारकथने भट्टारकश्रीसोमसेनविरचिते . गर्भाधानादिपञ्चदशक्रियामरूपणो नामाष्टमोऽध्यायः समाप्तः।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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