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________________ २५४ सोमसेनभट्टारकविरचित गोबरसे छह मिट्टीके दियोंको पूरे भरकर उत्तर दिशामें जुदा जुदा रख दे। और फिर उन्हें उठाकर बालकके चारों ओर रख दे। फिर छुरा, कैंची, डाभके सात तिनके और उस्तरा घिसनेकी शिलको जलसे भरे कलश के ऊपर रखकर उनपर पुष्प, गन्ध और अक्षत डाले । बालकका पिता स्नान कर माताकी गोद में बैठे हुए बालकके सामने खड़ा होकर ठंडे और गर्म जलके दोनों पात्रों को दोनों हाथोंमें लेकर दूसरे वर्तन में एक साथ उनमेंका जल गेरे । फिर उसमें हल्दी और दही डालकर उस जलको बायें हाथसे बालकके सिरके केशोंपर सींचे और दाहिने हाथसे उन केशको धोवे । बाद मक्खनसे घिसकर गर्म जलसे बालोंको धोवे । और फिर उस मांगलीक कलशके जलसे धोकर गन्धोदकसे सींचे - धोवे ॥ १५२ - १५९ ॥ ततो दक्षिणकेशेषु स्थानत्रयं विधीयते । प्रथमस्थानके तत्र कर्तनाविधिमाचरेत् ।। १६० ।। शालिपात्रं निधायाग्रे खदिरस्य शलाकया । पञ्चदर्भैः सुपुष्पैश्च गन्धद्रव्यैः क्षुरेण च ॥ १६१ ॥ वामकरेण केशानां वर्तिं कृत्वा च तत्पिता । अङ्गुष्ठाङ्गुलिभिश्चैतद्धृत्वा हस्तेन कर्तयेत् ॥ १६२ इसके बाद दाहिनी तरफके केशोंके तीन स्थान बनावे | उनमें से पहले स्थानके केशको कैचीसे कतरे । उस समय बालक के साम्हने शालिके चावलोंसे भरा हुआ बर्तन रखकर खदिरवृक्ष की एक समिधा, पांच दर्भ, पुष्प, गन्ध और छुरा बायें हाथमें लेकर उस बालक के केशोंकी बटकर बत्ती बनाकर, पिता उन केशोंको अंगूठे और उंगलीसे दबाकर दाहिने हाथमें कैंची लेकर कतरे ॥ १६०-१६२॥ मंत्र — ॐ नमोऽर्हते भगवते जिनेश्वराय मम पुत्र उपनयनमुण्डमुण्डितो महाभागी भवतु भवतु स्वाहा । इत्युच्चरन्केशाँसंच्छिद्य शमीपर्णैः सह भार्यायै दद्यात् । साऽपि 6 तथा भवतु इत्युक्त्वा क्षीरघृतमिश्रितान् कृत्वा गोमयशरावे क्षिपेत् । अर्थात् बाल कतरते समय ॐ नमोऽर्हते ' इत्यादि मंत्र पढ़कर बाल कतरे । उन कतरे हुए केशों को शमीवृक्षके पत्तोंके साथ बालककी माताके हाथमें देवे । माता भी 'तथा भवतु' कहकर उन केशोंको दूध और घी लगाकर गोबरसे भरे हुए दिये में छोड़ दे । द्वितीयस्थाने तिलपात्रमग्रे निधाय पूर्वोक्तशस्त्रशेषैश्व - 'ॐ नमः सिद्धपरमेष्ठिने मम पुत्रो निर्ग्रन्थमुण्डभागी भवतु स्वाहा । ' इत्युक्त्वा केशान् प्रच्छिद्य तस्यै दद्यात् । सा तथा करोतु । अर्थात् दूसरे स्थानके केशों को कतरते समय तिलोंसे भरा हुआ पात्र बालकके सामने धरकर पहले की तरह छुरा वगैरह हाथमें लेकर ' ॐ नमः सिद्धपरमेष्ठिने' इत्यादि मंत्र पढ़कर केशोंको कतरे और माता के हाथमें देवे । माता भी पहले की तरह विधि करे ।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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