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________________ सोमसेनभट्टारकविरचित सोते समय अपने घरमें पूर्व दिशाकी तरफ, ससुराल में दक्षिणकी तरफ और प्रवास में पश्चिमकी तरफ सिर करके सोवे । उत्तर दिशाकी तरफ कभी भी सिर न करे ॥ २४ ॥ तृणे देवालये चैव पाषाणे चैव पल्लवे । अङ्गणे द्वारदेशे तु मध्यभागे गृहस्य च ।। २५ ॥ रिक्तभूमौ तथा लोष्टे पार्श्वे चोच्छिष्टसन्निधौ । शून्यालये स्मशाने च वृक्षमूले चतुष्पथे ॥ २६ ॥ भूतस्थानेऽहिगेहे वा परस्त्रीचोरसन्निधौ । कुलाचाररतो नित्यं न स्वपेच्छ्रावकः क्वचित् ॥ २७ ॥ तृणोंपर, मंदिर में, पत्थरोंपर, पत्तोंपर, आँगन में, दरवाजेके बीच, घरके बीच में, खाली जमीन में, मिट्टी के ढेलोंपर, उच्छिष्ट (झूठन) के समीप, शून्यस्थानमें, स्मशानमें, वृक्षकी जड़ों में, चौराहेमें, भूतके स्थानोंमें, सपके बिलोंपर, पराई स्त्रीके पास और चोरोंके पास अपने कुलपरंपरागत आचरण में तत्पर श्रावक कभी न सोवे । भावार्थ — इन स्थानों में कभी नहीं सोना चाहिए ॥ २५-२७॥ २३४ ऋतुमत्यां तु भार्यायां तत्र सङ्गादिकं चरेत् । अनृतुमत्यां भार्यायां न सङ्गमिति केचन ।। २८ । स्त्रीके ऋतुमती होनेपर संभोग आदि क्रिया करे । और उसके ऋतुमती न होने तक संभोग न करे, ऐसा किन्हीं किन्हींका कहना । भावार्थ — जब तक स्त्री रजस्वला न हो तब तक उससे समागम न करना चाहिए । जब वह रजस्वला हो तभी उसके साथ समागम करना चाहिए, ऐसा किसी किसी शास्त्रकारका मत है ॥ २८ ॥ गर्भाधानाङ्गभूतं यत्कर्म कुर्यादिचैव हि । रात्रौ कुर्याद्विधानेन गर्भबीजस्य रोपणम् ॥ २९ ॥ गर्भाधान सम्बन्धी जो होमादि क्रियाएं करना हों वे सब दिनमें ही कर लें । रात्रिमें विधिपूर्वक गर्भबीजका रोपण करे ॥ २९ ॥ मूत्रादिकं ततः कृत्वा क्षालयेत्रिफलाजलैः । योनि रात्रौ गते यामे सङ्गच्छेद्रतिमन्दिरम् ॥ ३० ॥ एक पहर रात्रि बीत चुकने पर, स्त्रियाँ पेशाब आदि करके हरड़ा, बहेड़ा और आँवला- इस त्रिफला के जलसे योनि - जननेंद्रिय को धो लें । पश्चात् वे शयनागार में जावें ॥ ३० ॥ पादौ प्रक्षालयेत्पूर्व पश्चाच्छय्यां समाचरेत् । मृदुशय्यां स्थितः शेते रिक्तशय्यां परित्यजेत् ॥ ३१ ॥ शयनागार में जाकर प्रथम अपने पैरोंको जलसे धोवें । पश्चात् शय्यापर पैर रक्खें । कोमल शय्यापर सोवें । जो शय्या कोमल न हो- कड़ी हो कठोर हो, उसपर न सोवें ॥ ३१ ॥ उपानहौ वेणुदण्डमम्बुपात्रं तथैव च । ताम्बूलादिसमस्तानि समीपे स्थापयेद्गृही ॥ ३२ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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