SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८६ सोमसेनभट्टारकविरचित संक्षेपेण मया प्रोक्तं गृहिणां दानलक्षणम् । दत्वा दानं यथाशक्ति भुञ्जीत श्रावकः स्वयम् ॥ १४६ ॥ हमने यह संक्षेपसे गृहस्थियोंके दानका कथन किया है। इसी तरह अपनी शक्तिके अनुसार दान देकर श्रावक आप स्वयं भोजन करे ॥ १४६ ॥ भोजन-विधि । प्रक्षाल्य हस्तपादास्यं सम्यगाचम्य वारिणा । स्ववान्धवान् समाहूय स्वस्य पंक्तौ निवेशयेत् ॥ १४७ ॥ __ भोजन करनेको बैठनेके पहिले जलसे हाथ पैर और मुंह धोकर अच्छी तरह आचमन करे और फिर अपने बन्धु-वर्गको बुलाकर उन्हें अपनी पंक्तिमें साथ लेकर बैठे ॥ १४७॥ पंक्तिभेद। क्षत्रियसदने विप्राः क्षत्रिया वैश्यसमनि । वैश्याः क्षत्रियगेहे तु भुञ्जते पंक्तिभेदतः ॥ १४८ ॥ विप्रस्य सदने सर्वे विट्रक्षत्रियाश्च भुञ्जते । शुद्राः सद्मसु सर्वेषां नीचोच्चाचारसंयुताः ॥ १४९ ॥ क्षत्रियोंके मकानमें ब्राह्मण, वैश्यके मकानमें क्षत्रिय और क्षत्रियके घरमें वैश्य निरनिराली पंक्तिमें बैठकर भोजन करें । एकही पक्तिमें न बैठे। ब्राह्मणके घरपर वैश्य और क्षत्रिय सब भोजन करें । तथा नीच ऊंच सभी जातिके शूद्र ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्योंके घरपर भोजन करें । भावार्थजैसा भोजनका क्रम बताया गया है उसी तरह अपनी अपनी अलहदी पंक्तिमें बैठ कर भोजन करना चाहिए । ब्राह्मण ब्राह्मणकी पंक्तिमें, क्षत्रिय क्षत्रियकी पक्तिमें, वैश्य वैश्यकी पंक्तिमें और शूद्र अपने अपने योग्य शूद्रकी पंक्तिमें बैठकर भोजन करें । यह नहीं कि, ब्राह्मणकी पंक्तिमें क्षत्रिय वैश्य और शूद्र, क्षत्रियकी पक्तिमें ब्राह्मण वैश्य और शूद्र, वैश्यकी पक्तिमें ब्राह्मण क्षत्रिय और शूद्र तथा शूद्रकी पक्तिमें ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य बैठकर भोजन करें। तथा इससे यह भी पाया जाता है कि शूद्रके घरपर कोई भी भोजन न करे । इसी तरह उच्च शूद्रके यहां नीच शूद्र भोजन करे, परंतु नीच शूद्रके यहां उच्च शूद्र भोजन न करे ॥१४८-१४९॥ भोजनके अयोग्य स्थान । विण्मूत्रोच्छिष्टपात्रं च पूयचर्मास्थिरक्तकम् । गोमयं पङ्कदुर्गन्धस्तमो रोगांगपीडितः ॥ १५० ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy