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________________ त्रैवर्णिकाचार। १५१ अथ लवंगाद्याहुतयः॥ ॐ हाँ अर्हदभ्यः स्वाहा। ॐ ही सिध्देभ्यः स्वाहा । ॐ हूँ सूरिभ्यः स्वाहा। ॐ हाँ पाठकेभ्यः स्वाहा । ॐ न्हः सर्वसाधुभ्यः स्वाहा ॥ ॐ ही जिनधर्मेभ्यः स्वाहा । ॐ ही जिनागमेभ्यः स्वाहा । ॐ म्ही जिनालयेभ्यः स्वाहा । ॐ म्ही सम्यग्दर्शनाय स्वाहा । ॐ ही सम्यग्ज्ञानाय स्वाहा । ॐ ही सम्यक्चारित्राय स्वाहा । ॐ ही जयाद्यष्टदेवताभ्यः स्वाहा । ॐ ही षोडशविद्यादेवताभ्यः स्वाहा । ॐ ही चतुर्विंशतियक्षेभ्यः स्वाहा । ॐ ही चतुर्विंशतियक्षीम्यः स्वाहा । ॐ ही चतुर्दशभ वनवासिभ्यः स्वाहा ॐ ही अष्टविधव्यन्तरेभ्यः स्वाहा ॐ ही चतुर्विधज्योतिरिन्द्रेभ्यः स्वाहा । ॐ ही द्वादशविधकल्पवासिभ्यः स्वाहा । ॐ ही अष्टविधकल्पवासिभ्यः स्वाहा । ॐ ही दशदिक्पालकेभ्यः स्वाहा । ॐ ही नवग्रहेभ्यः स्वाहा । ॐ ही अष्टविधकल्पवासिभ्यः स्वाहा । ॐ ही अग्नीन्द्राय स्वाहा । ॐ स्वाहा भूः स्वाहा । भुवः स्वाहा । स्वः स्वाहा ॥ एतान् सप्तविशान्तमन्त्राँश्चतुवारानुच्चाये प्रत्येकं लवंगगन्धाक्षतगुग्गुलुतिलशालिकुङ्कुमकपूरलाजागुरुशर्कराभिराहुतीः रुचा जुहुयात् ॥ इति लवङ्गाद्याहुतयः॥ १०८ ॥ ५३॥ “ ॐ ह्रीं अर्हस्य " इत्यादि सत्ताईस मंत्रोंका चार चार वार उच्चारण कर हरएक मंत्रको लौंग-गन्ध-अझत-गुग्गुल-तिल-शाली-कुंकुम-कपूर-लाजा-( भुने चांवल ) अगुरु-और शक्कर इनकी सूचीसे आहूतियां देवे । इस प्रकार १०८ एकसौ आठ आहूति दे ॥ ५३॥ . ॥ पूर्ववत् षडाज्याहुतिपञ्चतपणैकपर्युक्षणानि ॥५४॥ . . इसके बाद पहले की तरह छह घृताहूति पंचतर्पण और एक पर्युक्षण करे । इनके करते समय पूर्वोक्त मंत्रोंको बोलता जाय ॥ ५४ ॥ ॥अथ पीठिकामन्त्रः॥ ॐ सत्यजाताय नमः । ॐ अर्हज्जाताय नमः ॐ परमजाताय नमः। ॐ अनुपमजाताय नमः ॐ स्वप्रधानाय नमः । ॐ अचलाय नमः। ॐ अक्षयाय नमः । ॐ अव्याबाधाय नमः । ॐ अनन्तज्ञानाय नमः। ॐ अनन्तदर्शनाय नमः । ॐ अनन्तवीर्याय नमः । ॐ अनन्तसु
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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