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________________ त्रैवर्णिकाचार। “ॐ ही " इत्यादि पढ़कर गणधरोंकी पादुकाकी पूजा करे ॥ १५ ॥ ॐ ही कलियुगप्रवन्धदुर्मागविनाशनपरमसन्मार्गपरिपालन भगवन् यक्षेश्वर जलार्चनं गृहाण गृहाण ॥ इत्यादि जिनस्य दक्षिणे यक्षार्चनम् ॥ १६ ॥ "ॐ ही ” इत्यादि पढ़कर जिन भगवानके दक्षिणकी ओर यक्षोंकी पूजा करे ॥ १६ ॥ ॐ ही कलियुगप्रबन्धदुर्मार्गविनाशिनि सन्मार्गप्रवतिीन भगवति यक्षीदेवते जलाद्यर्चनं गृहाण गृहाण । इत्यादि वामे शासनदेवतार्चनम् ॥ १७॥ यह मंत्र पढ़कर जिन भगवानकी बाई ओर शासन देवतोंकी पूजा करे ॥ १७ ॥ ॐ हाँ उपवेशनभूः शुध्द्यतु स्वाहा ॥ होमकुण्डपूर्वभामे दर्भपूलेनोपवेशनभूमिशोधनम् ॥ १८ ॥ यह मंत्र पढ़कर होम कुंडके पूर्वभागमें दर्भके पूलैसे बैठनेकी जमीनको शुद्ध करे ॥ १८ ॥ ॐ ही परब्रह्मणे नमो नमः । ब्रह्मासने अहमुपविशामि स्वाहा ॥ होमकुण्डाग्रे पश्चिमाभिमुखं होता उपविशेत् ॥ १९ ॥ यह मंत्र पढ़कर होता ( होम करनेवाला ) होम कुंडके अग्रभागमें पश्चिमकी ओर मुख करके बैठे ॥ १९॥ ॐ ही स्वस्तये पुण्याहकलशं स्थापयामि स्वाहा ॥ शालिपुञ्जोपरि फलसहितपुण्याहकलशस्थापनम् ॥२०॥ यह मंत्र पढ़कर चावलोंके ढेरपर पुण्याहवाचनके कलश स्थापन करे और उनके ऊपर नारियल आदि कोईसा फल रक्खे ॥ २० ॥ ॐ हाँ हाँ हूँ हाँ हा नमोर्हते भगवते पद्ममहापअतिगञ्छकेसरिपुण्डरीकमहापुण्डरीकगङ्गासिन्धुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तासीतासीतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकूलारक्तारक्तोदापयोधिशुद्धजल. सुवर्णघटप्रक्षालितवररत्नगंधाक्षतपुष्पार्चितमामोदकंपवित्रं कुरु कुरु झं झं झौं झौं वं वं मंमं हं हं सं सं तं तं पं पं द्राँ ड्राँ द्री द्रा हैं सः ॥ इति जलेन प्रसिञ्च्य जलपवित्रीकरणम् ॥ २१ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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