SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .विकाचार 1..... " “ॐ ह्रीँ वाँ ” इस मंत्र का उच्चारण कर पूण्यांजलि क्षेपण करै ॥ १ ॥ ॐ हीँ अत्रस्थक्षेत्रपालाय स्वाहा || क्षेत्रपालबलिः ॥ २ ॥ इस मंत्र का उच्चारण कर क्षेत्रपालको बलि देवे ॥ २ ॥ १४३ ॐ नहीँ ँ वायुकुमाराय सर्वविघ्नविनाशनाय महीं पूतां करु करु हूं फट् स्वाहा || भूमिसम्मार्जनम् ॥ ३ ॥ इस मंत्र को पढ़कर भूमिका सम्मार्जन- सफाई करै ॥ ३ ॥ ॐ नहीँ मेघकुमाराय घरां प्रक्षालय प्रक्षालय अं हं सं तं पं स्वं झं झं यं क्षः फट् स्वाहा || भूमिसेचनम् ॥ ४ ॥ यह मंत्र पढ़कर भूमीपर जल सीचें ॥ ४ ॥ ॐ हीँ अग्निकुमाराय इम्यूँ ज्वल ज्वल तेजः पतये अमिततेजसे स्वाहा ।। दर्भाग्निप्रज्वालनम् ॥ ५ ॥ यह मंत्र पढ़कर दर्भसे अग्नि सुलगावे ॥ ५ ॥ हीँ क्रौं षष्टिसहस्रसंख्येभ्यो नागेभ्यः स्वाहा । नागतर्पणम् || ६ || इस मंत्रका उच्चारण कर नागोंकी पूजा करै ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं भूमिदेवते इदं जलादिकमर्चनं गृहाण गृहाण स्वाहा । भूम्यर्चनम् ॥ ७ ॥ यह मंत्र पढ़कर भूमिकी पूजा करै ॥ ७ ॥ ॐ ह्रीँ अहं क्षं वं वं श्रीपीठस्थापनं करोमि स्वाहा || होमकुण्डा - प्रत्यक् पीठस्थापनम् ॥ ८॥ इस मंत्रका उच्चारण कर होम कुंडसे पश्चिमकी ओर पीठ स्थापन करै ॥ ८ ॥ ॐ न्हीँ ँ समग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्यः स्वाहा || श्रीपीठार्चनम् ॥ ९ ॥ इस मंत्र को पढ़कर पीठकी पूजा करै ॥ ९ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy