SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोमसेनभट्टारकविरचित ॐ हाँ ही हूं हौं हः असि आ उ सा अस्य देवदत्तस्य सर्वोपद्रवशान्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥ अयं मूलमन्त्रः ॥ ७५ ॥ यह मूल मंत्र है। इसका एकसौ आठ बार जप करै जाप जपनेवाला देवदत्तके स्थान में अपना नाम जोड़ दे॥ शांतिकर्म। ज्वररोगोपशान्त्यर्थं श्वेतवर्णैर्यन्त्रमुद्धार्य सम्पूज्य पश्चिमाभिमुखः सूरिः ज्ञानमुद्रापद्मासनं श्वेतजापैरष्टोत्तरशतं जपेत् पश्चिमरात्रौ। त्रिपञ्चसप्तदिनाभ्यन्तरे ज्वरो मुञ्चति ॥ एवमन्येषामपि रोगाणामनुष्ठेयम् ।। इति शान्तिकर्म ॥ ७६ ॥ ज्वररोगकी शान्तिके लिए बुद्धिमान पुरुष रात्रिके पिछले 'भागमें श्वेतवर्णसे यंत्र खेंचकर उसकी पूजा कर पश्चिमकी ओर मुख कर ज्ञानमुद्रा धारण कर पद्मासन बैठ कर श्वेत जापसे एक सौ आठ जप करै । इस तरह करनेसे तीन पांच अथवा सात दिनके भीतर ज्वर दूर हो जाता है । इसी तरह अन्य रोगोंके लिएभी अनुष्ठान करै । इसे शान्तिकर्म कहते हैं ॥ ७६ ॥ __ पौष्टिककर्म । एवं पौष्टिकेऽपि तथैव । उत्तराभिमुख इति विशेषः॥ ॐ हाँ ही हूँ हौं हः असि आ उ सा अस्य देवदत्तनामधेयस्य मनःपुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ पुष्टिकर्म ॥ ७७ ॥ इस तरह पौष्टिक कभी ऐसाही करै । इतना विशेष है कि इस जापमें उत्तरकी ओर मुख कर बैठे । “ओं ह्रां ह्रीं” इत्यादि पौष्ठिक कर्ममें जप करनेका मंत्र है । इसे पौष्टिक कर्म कहते हैं ॥ ७७॥ वशीकरण । अथ वश्यकर्मणि । रक्तवर्णैर्यन्त्रोद्धारः रक्तपुष्पैः । स्वस्तिकासनपद्ममुद्रांकितः पूर्वाण्हे यक्षाभिमुखः- ॐ हाँ हीं हूं हौं हः अ सि आ उ सा अमुं राजानं वश्यं कुरु कुरु वषट्--वामहस्तेन मन्त्र जपेत् ॥ इति वश्यकौ ॥ ७८ ॥ इसके अनन्तर वश्य कर्ममें इस प्रकार करै कि लालरंगसे यंत्रोद्धार करे, लाल पुष्पोंसे पूजा
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy