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________________ taarचार । अथ परमात्मध्यानम् । ॐ ह्रीँ ँ णमो अरिहंताणं अर्हदभ्यो नमः ॥। २१ वारं ॥ ३९ ॥ ॐ हीँ अहं णमो सिद्धाणं सिद्धेभ्यो नमः ॥ २१ वारं ॥ परमात्मध्यानमन्त्र ४० एवं तु कुर्वतः पुंसो विमा नश्यन्ति कुत्रचित् ॥ ये दो मंत्र परमात्मा का ध्यान करनेके लिए है जिनका हस्तकका बीस एक्कीस बार जप करे ॥ ३९ ॥ ४० ॥ १३३ आधिर्व्याधिः क्षयं याति पीडयन्ति न दुजर्नाः ॥ १ ॥ इति सकलीकरणम् ॥ उक्त रीति से मंत्रों का प्रयोग करनेवाले पुरुषके सारे विघ्न नाशको प्राप्त होते हैं । उसकी आधि व्याधि सब क्षयको प्राप्त होती है । और उसे दुर्जन कहीं पर भी पीडा नहीं पँहुचा सकते । इस तरह सकली करणकी विधि कही गई ॥ ४५ ॥ तत आव्हानस्थापनसन्निधीकरणं कृत्वा जिनश्रुतसूरीन् पूजयेत् ॥ ४१ ॥ सकलीकरण कर चुकने के पश्चात् आव्हान स्थापन और सन्निधकरणकर जिन श्रुत और सूरिकीपूजा करे । इनके मंत्र आगे बताते हैं ॥ ४१ ॥ जिनश्रुतसूरि पूजा मंत्र ॐ हाँ अर्ह श्रीपरब्रह्मणे अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जलं निर्वपामि स्वाहा । एवं गन्धादि । अष्टनव्यद्रव्यपूजनम् | जिनपूजा ॥ ४२ ॥ ओं ह्रीं अर्ह इत्यादि मंत्र पढकर जल चढावे । इसी तरह गंध अक्षत आदि द्रव्य चढ़ावे । ये अष्टद्रव्य प्रासुक ताजें बने हुए होने चाहिए । इसे जिन पूजा कहते हैं ॥ ४२ ॥ ॐ ही परमब्रह्ममुखकमलोत्पन्नद्वादशाङ्गश्रुतेभ्यः स्वाहा ॥ श्रुतपूजामन्त्रः ॥ ४३ ॥ पूजाका मंत्र है। इस मंत्रसे श्रुत-शास्त्रकी पूजा करे ॥ ४३ ॥ ॐ हीँ शिवपदसाधकेभ्य आचार्यपरमेष्ठिभ्यः स्वाहा || आचार्यपूजामन्त्रः ॥ ४४ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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