SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - त्रैवर्णिकाचार | १२९ पूजापात्र बुद्धि । ॐ हाँ ह्रीं हूँ ह्रौं न्हः नमोर्हते भगवते श्रीमते पवित्र जलेन पात्रशुद्धिं करोमि स्वाहा ॥ पात्रेषु पूजांगद्रव्यस्थापनम् ॥ २३ ॥ ॐ ह्रीं इत्यादि मंत्र पढ़कर संपूर्ण पूजा पात्रों पर शुद्ध जल डाले और भिन्न भिन्न पूजा पात्रों में भिन्न भिन्न पूजा द्रव्य रखें । पूजाद्रव्य शुद्धि | ॐ ह्रीं अर्ह झौं झौं वं मं हं सं तं पं इवीं क्ष्वीं हं सं असि आउ सा समस्त जलेन शुद्धपात्रे निक्षिप्त पुष्पादि पूजाद्रव्याणि शोधयामि स्वाहा ॥ २४ ॥ ओं ह्रीं इत्यादि मंत्र उच्चारण कर पूजा सामग्रियोंपर पानी प्रक्षेपण करें । विद्यागुरु पूजन | ॐ ह्रीं अय्यां दिशि अस्माद्विद्या गुरुभ्यो बलिं ददामि स्वाहा ॥ २५ ॥ ओं न्हीं इत्यादि मंत्र उच्चारण कर विद्या गुरुके लिये बलिदान करें । सिद्धार्चन । ॐ व्हीं सिद्धपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा ।। सिद्धायार्घ्य निवेदनम् ||२६|| ओं-हीं इत्यादि मंत्र पढ़कर सिद्धि परमेष्टिको अर्घ चढ़ावे । सकली करणम् । रेफैवलाशताकुलैः ॥ अग्निमण्डलमध्यस्थै सर्वागदेशजैयत्वा ध्यानदग्धवपुर्मलम् ॥ दर्भासने स्थित्वा ध्यायन्निदं पठेत् । ॐ ह्रीं अर्ह भगवतो जिनभास्करस्य बोध सहस्रकिरणैर्मम कर्मेन्धस्य द्रव्यं शोषयामि घे घे स्वाहा । इत्युच्चार्य कर्मेन्धनानि शोषयेत् ॥ शोषणम् ॥ २७ ॥ अग्नि मण्डलके बीच में स्थित, और सेकड़ों ज्वालाओंसे व्याप्त जो रेफ, वह अपने शरीर के सब अंगोंसे निकल कर पापमलको ध्यानद्वारा भस्म करता है । १७
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy