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________________ । प्रस्तर्द्वादश नाव्यस्तु सायं तु नव नाडिकाः । होमकालः समुद्दिष्टो मुनिभिस्तत्त्वदृष्टिभिः ॥ १८३ ॥ ऊपर के दो श्लोकोंद्वारा बतलाया गया काल होम करनेका मुख्य काल है । इसके सिवा सौ काल, सुबह के वक्त सूर्योदय हो जानेके बाद बारह घड़ीतक और शामको सूर्य अस्त हो जाने के बाद at घड़ीतक होम करनेका है ऐसा तत्त्वदर्शी मुनियोंने कहा है ॥ १८३ ॥ अग्निहोत्री की प्रशंसा । एवं प्रतिदिनं कुर्वन्नरुपासनाविधिम् । अग्निहोत्री द्विजः प्रोक्तः स विप्रैर्ब्रह्मवेदिभिः ॥ १८४ ॥ धार्मिको भूमिदेवोऽसावाहिताभिर्द्विजोत्तमैः । आर्यश्वपसः शिष्टः सुमात्मेति प्रकीर्तितः । १८५ ।। तरह पूर्वोक्त प्रकारसे प्रति दिन विधिपूर्वक अभिकी उपासना करनेवाले पुरुषको आत्माके निजस्वरूपको पहचाननवाले बिमोंने अग्रिहोत्री दिन कहा है। तथा द्विनोंमें श्रेष्ठ पुरुष धार्मिक, भूमिका देव, आहिताग्नि, आर्य, उपासक शिष्ठ, पुण्यात्मा इत्यादि शब्दों द्वारा उसका गुणगान करते हैं ॥ १८४ ॥ १८५ ॥ अग्निहोत्री फल | आहिताग्निद्विज को यत्र ग्रामे वसत्यहो । सप्ते तयो न तत्र स्युः शाकिनीभूतराक्षसाः ॥ १८६॥ व्याघ्रसिंहगजाद्याश्च प्रीडां कुर्वन्ति नो कदा | अकाले मरणं नास्ति सर्पव्याधिभयं न च ॥ १८७ ॥ प्रजा नृपप्रधानाद्याः सर्वेऽत्र सुखिनो जनाः । धनधान्यैः परिपूर्णा गोधनं तुष्टि पुष्टिदम् ॥ १८८ ॥ : सन्ति ते यत्र अग्रिहोत्रद्विजाः पुरे । तस्य देशे कचिन्न स्यादाधिव्याधिप्रपीडनम् ॥ १८९ ॥ तेभ्यो दानं नृपैर्देयं यथेष्टं गोकुलादिकम् । ग्रामक्षेत्रगृहामन्त्ररत्वाभरणवस्त्रकम् ।। १९० ।।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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