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________________ त्रैवर्णिकाचार । समिधा। पिप्पलेन पलाशेन शम्या वा द्वादशाङ्गुलम् । आर्टेन्धनर्बुधः कुर्यात्समिधां होममुत्तमम् ॥ १४० ॥ पीपल, पलाश अथवा शमीकी बारह अंगुल लंबी गीली लकड़ियोंसे बुद्धिमान गिरस्त होम करे ॥१४॥ क्षीरद्रुमैर्वाऽथ पलाशभूरुहैः, सशर्कराक्षीरघृतप्लुतैः पृथक् । होमेऽष्टविंशद्भिरिमैः ( ? )समिन्धनै-, नमोऽर्हतेत्यादिभिरेव पञ्चभिः ॥ १४१ ॥ अथवा बड़की किंवा पलास (ढाक) की समिधाको जुदा जुदा शक्कर, दूध और घीसे भिजोकर ' नमोऽहते । इत्यादि पांच मंत्रोंसे होम करे । होममें अहाईस तरहकी समिधा होनी चाहिए ॥ १४१॥ वटिकाविधि। काश्मीरागुरुकर्पूरगुडगुग्गुलचन्दनैः।। पुष्पाक्षतजलै जामिलितैरक्षसम्मितैः ॥ १४२ ॥ जयादिदेवतामन्त्रैरनेराहुतिमम्बुना । ब्रह्ममायादिहोमान्ते वटिकाहोममाचरेत् ॥ १४३ ।। केशर, काला चंदन, कपूर, गुड़, गुग्गुल, सफेद्र चन्दन, पुष्प, अक्षत, जल, भुने चावल और बहेड़ा इनकी गोलियां बनावे और जयादि देवतोंके मंत्रोंसे अमिमें आहुति दे । तथा जल द्वारा ब्रह्म-माया आदिका होम हो चुकने पर वटिका होम करे । यहां पर जो जलका होम बताया गया है वह जलमें ही करना चाहिए ॥ १४२॥ १४३ ॥ ___ होम करनेका अन्न । शाल्योदनं क्षीरविचित्रभक्ष्य पकानसार्पः श्रतपायसं च । सुस्वादु पकं कदलीफलं च, रुचाऽक्षमा मिलितं जुहोमि ॥१४४ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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