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________________ - त्रैवर्णिकाचार । wwwww तर्पयामि । ॐ हीं अहं तेषां पितरस्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह तेषां पितृतत्पितृतत्पितरस्तर्पयामि । एवं द्वात्रिंशन्मन्त्राः पितृणां तर्पणार्थ । तेषां नमस्कारमन्त्रोऽयम् । ॐ हीं अर्ह नमः। इसके बाद तिल और जलसे पितरों और पिताओंका तर्पण करे । इस तरह ये बत्तीस मंत्र पितृतर्पण करनेके हैं । और “ ॐ हीं अहं नमः " यह उनको नमस्कार करनेका मंत्र है। अथाक्षतोदकेन देवतानां तर्पणं । तन्मन्त्राः । ॐ हीं अहं जयाद्यष्टदेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह रौहिण्यादिषोडशविद्यादेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अहं यक्षादिपञ्चदशतिथिदेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह सूर्यादिनवग्रहदेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह इन्द्रादिदशदिक्पालदेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह श्याद्यष्टदिक्कन्यादेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह गोमुखादिचतुर्विंशतियक्षीदेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह चक्रेश्वर्यादिचतुर्विंशतियक्षदेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह असुरादिदशविधभवनवासिदेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अहं किन्नराधष्टविधव्यन्तरदेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह चन्द्रादिपञ्चविधज्योतिष्कदेवतास्तर्पयामि । ॐ हीं अर्ह सौधर्मादिवैमानिकदेवतास्तर्पयामि । ॐ ही अर्ह सर्वाहमिन्द्रदेवतास्तर्पयामि । इति तर्पणमन्त्राः । अतो नमस्कारमन्त्रोऽयम् । ॐ हीं अहं असि आ उ सा ॐ क्रौं नमः । एवं मध्याह्नसायाह्नयोः स्नानतर्पणान्यपि विहाय आचमनादिशेषक्रियां सर्वामाचरेत् । शिरःपरिषेचनं जलाञ्जल्याणि जाप्यं देवपूजादिसर्व कर्तव्यम् । इसके बाद अक्षत और जलसे देवतोंका तर्पण करे । उनके तर्पण करनेके ये मंत्र हैं । इस तरह देवतोंका तर्पण किया जाता है । यह उनको नमस्कार करनेका मंत्र है। इति प्रातः संध्योपासनक्रमः। इस तरह ऊपर बताये अनुसार प्रातःकातके समय संध्या वंदना करनेका क्रम है। इसी तरह मध्याह्नके समय और सायंकालके समय भी स्नान और तर्पण कर आचमन आदि सम्पूर्ण क्रियाएँ करे । सिरपर जल सींचना जलांजली देना, अर्घ चढ़ाना, जाप करना, देवपूजा करना आदि सम्पूर्ण कार्य करे।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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